तुझसे दूर रहकर माँ, मेने दुनिया को करीब से देखा
तू साथ नहीं हे यहाँ माँ, फिर भी मैं बहुत कुछ सिखा |
मतलब के दोस्त हैं, पैसो से रिश्ते हे
इस दुनिया में न जाने लोग जीते कैसे हैं |
मेरे दिल को बातो को तू जाने कैसे जान लेती थी
यहाँ तो सब लोग अपने मतलब का ही सुन पाते हैं |
तेरी गोद में ये दुनिया कितनी सुहानी दिखती थी
झुलसाने वाली गर्मी थी वो जो शीतल छाँव लगती थी|
दूंदने निकला जब अपनों को तो हर कोई नये चहरे में दिखा
सच कह रहा हु माँ तुझसे दूर होकर मैं बहुत कुछ सिखा |
ज़माने के इस गुलशन में काँटों से बचकर फूलो को चुनना सिखा
हिम्मत से सो गया खुद से जब भी सपनो में डरकर चीखा |
रंग रंगीली इस दुनिया में भला बुरा जान लेता हु मैं
अनजानों की भीड़ में अपनों को पहचान लेता हु मैं |
हर ठोकर एक नया होंसला देकर जाती हैं
तेरी याद ही बस अब आँखों को नाम कर पाती हैं |
तुझसे दूर रहकर माँ ,तेरी गोद में सोने को हम बहुत तरसे
यही दुआ हे रब से, तेरा नूर मेरी राहों में हमेशा बरसे |
3 responses to “तुझसे दूर रहकर माँ”
I really like this peom because it based on Maa, And i love my mom toooooooo much, I like to dedicate this beautiful one to my mom.
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Glad to dedicate this poem to your mother…………thanks for comments:)
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very good poem , i feel like you have expressing my feelings
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