this poem is written by one of my good freind “Rahul” . Enjoy it –
ज़माने की इस भीड़ में कही खो गया हु मैं |
सपनो को आखो में बंद किये फिर से सो रहा हु मैं|
निकला था घर से सपनो के पीछे , हकीकत की भूल- भुलैया में भटक गया हु मैं |
इधर भी आदमी, उधर भी आदमी
सरे आदमियों के बीच इन्सान दूंड रहा हु मैं |
काश कोई रोक लेता , इन बेमंजिल राहों पर जाने से पहले,
इन्ही राहों से मंजिलो का पता पूछ रहा हु मैं |
मुद्दत हो गयी जिसकी सूरत देखे को,
सपनो में उसी का दीदार कर रहा हु मैं |
सभी सवाल करते हे की कोंन हु मैं ?
उसी का जवाब बस दूंड रहा हु मैं |
मकान तो बहुत देखे इस दुनिया में
बस एक घर का पता पूछ रहा हु मैं |
दोस्ती देखी, प्यार देखा और देखे मतलबी चेहरे भी,
इन्ही सबसे तो इंसानियत की परिभाषा पूछ रहा हु मैं |
वो कहते हे जरा सोचो आने वाले कल के बारे में ,
क्या मालूम उन्हें, अभी तो गुज़रे हुए कल में ही जी रहा हु मैं |
One response to “कुछ इस तरह जिए जा रहा हु मैं ………..”
Very true lines……..
Really very few of us follow the path that we are born to follow. Most of us become the part of rate race and try to find happiness in same.
But the happiest and most successful people are only those who followed their heart.
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