I got mixed kind of comments on my previous poem “Bollywood theme….”. This time I am back on my favorite topic ‘dreams’. I collected few lines that I was writing on this topic from last four months. Still I don’t feel I am over on this topic. I can write lots more on this topic. Don’t know why I like this topic so much………….anyway, let’s see how it looks….
निकल पड़े हे घर से ख्वाबो के पीछे ,
तेज धुप में आँखों को मीचे ,
शुन्य से भरे आसमा के नीचे ,
कितने हे सवाल कुछ बुझे, कुछ उलझे |
ना मंजिल का ठिकाना ना राहों का पता,
अपनी तकदीर तो लकीरों को भी नहीं पता,
मील के पत्थर भी बताते नहीं रास्ता,
ना दिशाओ से कुछ मदद, ना हवाओ से सहायता |
थोड़े से पानी को मीलो चलाना हैं,
लग जाये गर भूख तो खाना भी खाना हैं,
थोडा सा आराम फिर मीलो का चलना हैं.
ख्वाबो के कारवा का इतना सा फ़साना हैं
अनजाने रास्तो पर पाना हर सपना हैं ,
बेगाने चेहरों को बनाना अब अपना हैं ,
कैसे भी हो रास्ते, गाना यही गाना हैं
अँधेरी रात के बाद ही सुनहरा मुकाम आना हैं |
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राह में मिलते मुसाफिर कितने ,
कुछ करते हे बातें, कुछ दूर से ही मुस्कुराते
कुछ उतर जाते दिल में, कुछ आखों तक ही रह जाते
कुछ गुजर जाते लम्हा बनकर तो कुछ यादो में बस जाते |
हर मुसाफिर में हैं यहाँ कुछ ना कुछ, कोई ऐसा तो कोई वैसा
देखता हूँ सबको, सीखता हूँ कुछ से, पर रहता मैं अपने जैसा
आ जाऊ नज़र दुनिया की भीड़ में, होगा कुछ तो मुझमे भी ऐसा
हो जाये नाम रोशन जहाँ में अपनों का, करू कोई काम तो ऐसा
हर मुसाफिर ने यहाँ अलग तराने गड़े
कुछ को मिली शोहरते तो किसी के फ़साने बने
कुछ गुम हो गए अंधेरो में तो कुछ रास्तो के पत्थर बने
हैं तकदीरो का खेल सब,कुछ ख्वाब तो ऊपर वाले ने भी इंसानों के लिए बुने
हर ज़िन्दगी में चलता हैं एक, ख्वाबो का कारवां
हर दिल में बसता हैं मुसाफिर कोई जवां
जीने दे जिंदगी वो ख्वाब, रोशन करे जो दिल का समां
चल चले उस रास्ते पे मुसाफिर, जहाँ तेरा मन रहे रमा
लगे जिस रास्ते के कांटे भी फूल की तरह
पनपे अरमानो का पेड़ जहाँ, पाकर सपनो की सतह
रहे दिलवालों की टोली जहाँ, हो जीने की हज़ार वजह
चल पड़ा हे ये मुसाफिर बसाने, वो ख्वाबो वाली जगह