इबादत मेने की, इनायत उसने की


इबादत मेने की, इनायत उसने की
दुआए मेरे दोस्तों की, जो ये ज़िन्दगी रोशन की !

मुफलिसी के मारे मुक़द्दर की भी,
मरम्मत और मालिश दोनों उसने की !
जरा सी इबादत मेने की,
और रहमतो की बारिश उसने की !

इबादत मेने की, इनायत उसने की …………………………….

काबिल से काबिल हर कोशिश को मेरी
कामयाबी की मंजिल उसने दी !
थोड़ी सी चहलकदमी बस मेने की,
और रास्तो की धूल उसने खत्म की !

इबादत मेने की, इनायत उसने की …………………………….

तकलीफों का तरन्नुम आता देख ,
होसलो को मेरे लड़ने की हिमाकत दी !
जरा सी दिलेरी बस मेने दिखाई,
और जूझने की ताक़त उसने दी !

इबादत मेने की, इनायत उसने की …………………………….

गमो से गरमाती दुपहर में भी,
दोस्त बनकर वो साथ चला !
आसुओं को पोछने की जहमत बस मेने की,
और हँसाने की हरक़त उसने आगाज़ की !

इबादत मेने की, इनायत उसने की ……………………………

अहम् से मुझे अकड़ता देखा
इंसानियत की तालीम उसने दी
जरा सी नादानी बस मेने की
और न भूलने वाली नसीहत उसने दी

इबादत मेने की, इनायत उसने की …………………………….

जायज़ हर तमन्ना मेरी,
तकदीर से लड़कर भी पूरी की !
तारो को ताकने की कोशिश भर मेने की,
और आसमाँ की चादर उसने झुका दी !

इबादत मेने की, इनायत उसने की …………………………….

न लिखा हे मेने कुछ यहाँ,
न कुछ कहने की कोशिश की !
क्या करे तारीफ ये नाचीज़ उसकी भला,
जिससे हे जिंदा हर ख्वाहिश ज़िन्दगी की !

इबादत मेने की, इनायत उसने की …………………………….

6 responses to “इबादत मेने की, इनायत उसने की”

  1. Awesome!
    Truly falling short of words to praise this one!!
    Your poetry is like an oasis among the rough realities of the world..
    It heals the soul n enlightens with His presence.

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  2. अद्भुत एवं अद्वितीय अभिव्यक्ति 🙏🙏✍️✍️✍️✍️✍️✍️

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