नज़्म ये नाज़ुक हैं पर नशा इसमें गहरा हैं !
अल्फाजों में करती बयाँ मेरे अरमानो का चेहरा हैं !!
कट रही हैं ज़िन्दगी यूँ तो, किस बात की चिंता हैं !
पर इत्मिनान वाली इस ज़िन्दगी में कुछ तो अधुरा हैं !
पास हैं दरिया पर दिल ढूंढे, जाने कौन सा कतरा हैं !
बेखोफ बहते कतरों पर लगा जैसे अनजाना सा पहरा हैं !!
दरिया ये ठहरा हैं पर पानी इसमें गहरा हैं !
मौजो में कटता मेरा मुफलिसी का महिना हैं !!
नए से दिन में कुछ भी नया नहीं रहता हैं !
वही दिन निकलता हैं और वैसे ही रात ढलती हैं !
न सुबह कुछ साथ लाती हैं ना शाम कुछ देकर जाती हैं !
हर रोज का वही किस्सा हैं हर दिन की वही कहानी हैं !
किस्सा ये कोरा हैं पर कसक इसमें गहरी हैं !
ख्वाबो में खुलती ये मेरे दिल की कचहरी हैं !!
ज़िन्दगी की पाठशाला में रोज वही पाठ पढाया जाता हैं !
ना मौसम कुछ बदल पाता हैं, ना तारीखे कुछ कर पाती हैं !
खिलने की उम्मीद से ख्वाहिशे दिल की खिड़की खटखटाती तो हैं !
पर व्यस्तता और वक़्त की तकरार में वो तड़पकर खाक हो जाती हैं !
ख्वाहिशे ये खामोश हैं, पर खनक इनकी मतवाली हैं !
मेरे दिल के गलियारों में गूंजती, ख़ूबसूरत सी ये कव्वाली हैं !!
साथ हे यूँ तो यार अपने, हर कोई ही यहाँ अपना हैं !
पर नज़रे ढूंढे जो चेहरा भीड़ में, वो बस सरगोशियो में बुना नगमा हैं !
मौसिकी मेरी उल्फत की हैं इसमें और अल्फाज़ अहले-दिल के हैं !
सुर सजे हैं ख्वाबो-ख्यालो से और आलाप कातिल तन्हाई के हैं !
नगमा ये नमकीन हैं पर रूह इसकी रूमानी हैं !
हसरत-ए-हमसफ़र में घुले चन्द जज्बात-ए-जवानी हैं !!
नज़्म ये नाज़ुक हैं पर नशा इसमें गहरा हैं !
अल्फाजों में करती बयाँ मेरे अरमानो का चेहरा हैं !!
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3 responses to “नज़्म ये नाज़ुक हैं…”
Nice 1 bro…..
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वाह वाह… सुभान अल्लाह!
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Very well expressed the unknown emptiness in a life which looks complete and happy..
Keep writing!
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