गुले – गुलज़ार


Human heart is the ocean of emotions and human mind is the treasure of thoughts. While living day-to-day life, many things inspire me to write. Few of such inspirations convert into poems, articles or stories. But there are many that doesn’t get chance to shape into any. Today, I decorate this post with such lines that I wrote at specific incidents but did not get chance to convert them into poem.  Thought these lines are complete in itself, I added some commentary in between in my own poetic way so that you get the context of compositions. I hope you like it –

तेरे नाम से शुरू होती हैं हर बात मेरी, भूल जाऊ तुझको ऐसी नहीं औकात मेरी ! लिखा था कभी मेने तेरी रहमत के बारे में, आज कहता हु कुछ तेरी जहमत के बारे में ! –
मेरे खुदा की हैं बस यही आदत बुरी,
की वो मदद भी करता हैं तो बताता तक नहीं!

एक दिन हमारे शहर में हो गया दंगा | हाँ यार …वही धर्म के नाम पे होने वाला पंगा | मन उदास हुआ, दर्द भी हुआ, पर क्या कर सकता था ये बंदा ! बस कलम उठाई और कर लिया दिल को ठंडा –

फिर जल उठा शहर मेरा !!
फिर घबरा गया दिल मेरा !!
रोई आँखे नए सिरे से,
पर दर्द कम्बखत सदियों पुराना हैं !!

सोचा कुछ कहे दोस्तों के नाम पर, और लिख दिया ये नजराना कमीनो के नाम पर –

गिले शिकवो के सैलाब जब भी उमड़े,
मेरे दोस्तों के नाम उनमे न निकले,
आएगा नाम कैसे मेरे यारो का उसमे,
उन कमीनो के दम से तो शिकायतों का भी दम निकले !!

वैसे तो इन बातो से अपना कोई लेना-देना नहीं पर इन बातो को युही भुला देना नहीं ! लिख लेते हे कभी-कभी हम दूसरो के अनुभवों पर भी, बिन सोचे की ये बात हम पर लागू नहीं ! हैं सच्चाई ये इस दुनिया के हर दुसरे शख्स की , केवल मेरे मन की कोरी कल्पना नहीं ! आपके साथ भी ऐसा हुआ हो तो ठीक हैं वरना अपन जैसो की भी इस दुनिया में कोई कमी नहीं –

हम यादो में उनकी खाना तो छोड़ ,
पानी को भी हाथ लगाते नहीं !
और जमाना ये हमसे कहता हे,
की हम नहाते क्यों नहीं !!

दोस्त कहकर वो दीवाना बना देते हैं,
सब कुछ लूटकर भी बेखबर बने रहते हैं !
कैसे जाने की मोहब्बत वो भी हमसे करते हैं,
क्योकि दोस्त तो वो हर किसी को कह देते हैं !

वो महफ़िल में हमको देखकर मुँह फेर लेते हैं !
नज़रे बचाकर हमसे हमको निहार लेते हैं !
दोस्तों से हमारे हालचाल जान लेते हैं !
गोयाकि क्या हम अभी तक जिंदा हैं !
शायद अपनी बेवफाई पर वो आज तक शर्मिंदा हैं !

वैसे तो करते नहीं हम अपनी तारीफे, पर तन्हाई में खोल लेते हे ये बंद लिफाफे ! सहमत हो तो बताएगा जरूर वरना भूल जयेइगा लगाके ठहाके  –

सूरत अपनी शरीफों वाली,
नीयत अपनी फरिश्तो वाली !
दिल में भरी हैं मोहब्बत-यारी,
और दिमाग में होशियारी !



कोई हँसी ख्वाब नहीं बनता ,
कोई ख़ूबसूरत ख्वाहिश नहीं पनपती !
दिन ऐसा गुजरा जो कोई,
तो उस दिन रात नहीं कटती !!



आये जो अपनी हरकतों पर हम, पागल पूरी दुनिया हो जानी हैं !
रोका हे खुद को पर यही सोचकर की. एक पागल ही इस दुनिया के लिए काफी हैं !!



ज़िन्दगी दर्द की दास्तान न हो पर दिल में दर्द का अहसास तो हो
उम्र जलवो की चाहत में न कटे पर मन में उजालो की आस तो हो
जो चाँहू सब पाऊ ऐसी दुआ नहीं दाता से
पर कुछ कर दिखाने का खुद पर विश्वास तो हो




शराबी की तो फितरत में हैं लडखडाना, पर ज़माने को तो चाहिए था समझाना ! खैर जो ज़माने ने ना समझा वो हम जैसे पागलो ने जाना ! …और फिर क्या… बन गया ये नजराना –

मेरे दिल में कोई राज नहीं
मैं दुनिया से नाराज भी नहीं
सोचता हु छोड़ दू शराब को हमेशा के लिए
पर मेरे दोस्त, वो दिन आज नहीं

माना की ये चीज़ बुरी हैं
पर मेरे लिए यही भली हैं
पीना पड़े गर ज़हर जिंदा रहने के लिए
तो ज़हर पीना भी सही हैं !

वैसे तो राजनीति हमको रास आती नहीं, पर अन्नाजी के अनशन के बाद, ये बोले बिना बात ख़त्म होगी नहीं –

ज्ञान की बात करता हैं, संविधान की बात करता हैं !
क्या बचा हैं ऐसा नेता कोई जो इमान की बात करता हैं !!

2 responses to “गुले – गुलज़ार”

  1. m ur side fan mr. slonki…. vaise main poems padhta nahi tha but achanak se hi apka page khul gya or padha tha,,, ek baat puchni hai apse….?

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