Road side Romeo


हुए जब भी हम पर हसीनो के हमले,
याद नहीं रहा कब गिरे, कब सँभले !

फूल गुलाब से ये देखे या छूले,
सूखे न मुरझाकर इन्हें धुप से बचा ले!

सर्द हवाये न इनकी रंगत चुरा ले,
की आहो से इन्हें जरा हम फिक्रमंद कर दे !

ये मासूमियत ये अदा इनकी, बन न जाये कही अकड़ कल की
की नज़रो से हम इन अठखेलियो में, हमदर्दी-ओ-हया भर दे !

ज़ालिम ज़माना हे ज़रा जोर ज़बरदस्ती वाला,
की बाँहों में भरकर इन्हें हम महफूज़ कर दे !

शोहदों सा नहीं मिजाज़ मेरा, यहाँ गिरे, वहाँ फिसले
आशिक हु हुस्न-ए-जवाहरातो का, तुम्हे तराशे, तुम्हे सहेजे !

कोई बेवफा न कभी इनके नाजुक दिल को तोड़े
की सब हसीनो से हम अकेले ही वफ़ा निभा ले !!

2 responses to “Road side Romeo”

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