क्यों किसी को कुछ बताते नहीं
रोते हैं पर आँसू दिखाते नहीं
कितने किस्से दिल को हैं कहना
लफ्ज़ जुबा तक पर आते नहीं
जबान अपनी, आवाज़ अपनी
अपने ही मन की बात सुनाती नहीं
कैसे करे किसी और का भरोसा हम
जब आहट खुद की ही सुन पाते नहीं
हैं जो मन के भीतर, एक तुफां हैं
उमड़ता हे अकेले में पर भीड़ में खो जाता हे कही
इसे शरमाना कहे या शराफत का नाम दे ..
कि शेर होकर भी शौक शिकार के दिखाते नहीं…
ये कैसी फितरत में ढाला हैं हमको खुदा ने
जाम हे हाथो में पर लबो से लगा पाते नहीं…
कोई कहे कैसे जिए इस कशमकश में अब
डरते हे बहकने से और पिये बिना रह पाते नहीं…
7 responses to “फितरत…”
Let me add few more lines from nida fazmi on Fitrat
“Kuch fitrat hi mili thi aisi, ki chain se jine ki surat na hui.
Jise chaha usee pa na sake, jo mila usse apna na sake”
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वाह..
कैसे करे किसी और का भरोसा हम
जब आहट खुद की ही सुन पाते नहीं
बहुत सुंदर अंकित जी.
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कैसे करे किसी और का भरोसा हम
जब आहट खुद की ही सुन पाते नहीं
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति।
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हैं जो मन के भीतर, एक तुफां हैं
उमड़ता हे अकेले में पर भीड़ में खो जाता हे कही…. उदासीन भीड़ में वह भी उदासीन हो जाता है
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एक संक्षिप्त परिचय ( थर्ड पर्सन के रूप में )तस्वीर ब्लॉग लिंक इमेल आईडी के साथ चाहिए , कोई संग्रह प्रकाशित हो तो संक्षिप ज़िक्र और कब से
ब्लॉग लिख रहे इसका ज़िक्र …. कोई सम्मान , विशेष पत्रिकाओं में प्रकाशित हों तो उल्लेख करें rasprabha@gmail.com per
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भारत के एक छोटे से गाँव में रहने वाले किसान का बेटा मैं, अंकित सोलंकी. पेशे से सोफ्टवेयर इंजीनियर और दिल से लेखक.
कविता लिखना बस एक कोशिश हैं, अपने आसमान में उड़ने की, अपनी आत्मा में झाँकने की, अपनी परिधि को परखने की और अपने अन्दर के मानव को निखारने की !
कभी देखियेगा मेरी कोशिशो के कारवाँ को – https://baramdekidhoop.wordpress.com/
मेरा ऑन लाइन पता – ankitsolanki13@gmail.com
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Wah, kya baat he… very nice..!!
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