न वो कुछ बोले, ना हम कुछ बोले
फिजा में अफवाहे फिर कौन घोले
जी भर के हँसे या जरा देर रो ले
बात बनाते लोगो को पर कोई क्या बोले
बोले तो कोई बोले हमें, उन्हें न बोले
कि हम तो हैं बिंदास बहुत, वो हैं जरा भोले
हर सूरत को वो एक नज़र से तौले
बोले जब भी किसी से मुस्कुरा के बोले
क्या खता उनकी जो वो हमसे शरमाये, ना बोले
क्या गलती हमारी जो देखे उन्हें हम, हौले हौले
मजबूर हैं खुद से जो हम उनकी राहों में डोले
ये आवारगी की आदत हैं जिसे जमाना चाहत बोले
ना कभी हम ‘इश्क’ बोले, ना कभी वो ‘कुबूल’ बोले
महफ़िल में मुबारके फिर कौन घोले
5 responses to “अफवाहों से मुबारको का सफ़र”
1 no …..
kya zamaya hai rang tumne hole hole
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Wow..a new kind of thought
presented beautifully
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Hahaha… very beautiful lines… specially last 2.
Many would be correlating from their school/college days.
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Beautiful as always 😇
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Bhut khoob
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