एक पाती पिता के नाम


सर्द मौसम में भी मिजाज गरम हैं
जुबाँ हैं उसकी सख्त पर मन नरम हैं

फटकार में भी जिसकी प्यार का मरहम हैं
सूरत हैं संजीदा सी वो पर दिल में रहम हैं

मुसीबत में सबके हिस्से के खाता जखम हैं
खुशियों में खामोश बनकर रखता संयम हैं

प्यार जताने में जैसे उसको आती शरम हैं
जो भी मिला पर ज़िन्दगी में बस उसका करम हैं

जरा पूछो जहाँ में उनसे, जिनके वालिद ख़तम हैं
ये दुनिया बिन बाप के कितनी बेरहम हैं

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