गुदगुदी


कोई तो गुदगुदी करो जोरो से यारो
कि आज मुझे हँसी नहीं आती

वो मुस्कान जो मरती थी कभी सूरत पर मेरी
आजकल चेहरे पर चाहकर भी नहीं आती

वैसे कोई क्यों करे कोशिश हमें हँसाने की आंखिर
गैरो से ये उम्मीद रखी भी नहीं जाती

वो दूर हो गए, भूल गए मेरे चाहने वाले जब से
उनकी आदत ज़िन्दगी से भूली भी नहीं जाती

हम आज भी बैठे हैं कि कोई आएगा साथ मुस्कराने को
पर इंतज़ार के इस आलम में ठिठोली भी नहीं होती

कोई कहे कैसे जमाये इन बिखरे बालो को ए ठाकुर
कि उदास सूरत अब आईने से भी देखी नहीं जाती

6 responses to “गुदगुदी”

    • आपकी तारीफ ने जरूर गुदगुदी की हैं…तभी तो मैं मुस्कुरा रहा हु…बहुत-बहुत शुक्रिया !!!!

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  1. हंसी अब फिर भी नहीं आएगी … सन्नाटा ही चेहरे पर बाकी है , ये क्या कम है

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    • हँसी आये ना आये…मुस्कान तो आ गयी मेरे चेहरे पर …आपका कमेन्ट देखकर …
      रही बात सन्नाटे की तो वो तो ज्यादा ही लगता हैं …कभी कम नहीं होता ….

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  2. very nice….like it
    वो मुस्कान जो मरती थी कभी सूरत पर मेरी
    आजकल चेहरे पर चाहकर भी नहीं आती

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