नादान दिल ने ख्वाहिश की ऐसे …


Some lovely thought struck in mind at various occasions. I hope it all collectively transmitting beautiful pleasure to reader.

नादान दिल ने ख्वाहिश की कुछ ऐसे
भूल गया सब कुछ
मन गुदगुदाया ऐसे !
रोका हैं यु तो
इस दिल को जैसे-तैसे !
पर अब ये नालायक, मानता नहीं जैसे !
पाना ये चाहे प्यार किसी से
तनहा सफ़र माँगे,
हमसफ़र राहों से !!

सर्द हवायें करे कैसी हरकत
रग – रग में दौड़े मस्ती का शरबत!
कहना मैं चाहू सबसे ये झटपट
हो गया दीवाना मैं
बेख़ौफ़ , बैगैरत ….

आज़ादियो की डोर जब खुलने लगी ज़रा
जवानी की पतंग तब उड़ने लगी जरा
आया हैं मौसम ये कितना सुनहरा
वक़्त की रेत को रोक लो ज़रा
कि कोई आने को हैं यहाँ …
कि कोई राहों में हैं खड़ा …

खूबसूरत इस ख्वाब का कभी तो आगाज़ हो
ख़ुशी से नहीं तो ख़ामोशी के साथ हो
कोई ना कोई किस्सा अपने भी साथ हो
कि ना जाने कब ये जान ज़िन्दगी से आजाद हो …
कि ना जाने कब अपना ठिकाना आसमानों के पार हो …

One response to “नादान दिल ने ख्वाहिश की ऐसे …”

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