मर्द


बात ये नहीं कि किसके कितने कपडे खुले हैं
बात ये हैं कि आपके विचार कितने बुरे हैं
स्कर्ट से सजे हैं या बुरके में ढँके हैं
औरत के जिस्म भी बस मिट्टी से बने हैं

कहने को बीवी हैं, कहने को बहनें हैं
हर रिश्ते से अलग पर उसके भी कुछ सपने हैं
जो जीता प्यार से तो ज़न्नत कदमो में हैं
जो दिखाया जोर तो महाभारत बनने को हैं

क्यों कहे ज़माना की हर जंग के पीछे औरत का हाथ हैं
सच तो ये हैं कि बड़ी कमीनी मर्दों की ये जात हैं
जो दिखायी अपनी जिद्द तो द्रोपदी भी बस एक दाँव हैं
जो आई अपनी इज्ज़त बचाने पर तो सीता में भी पाप हैं

ये आज की नहीं सदियों की बात हैं
नशा औरत में नहीं, नशा नीयत में होता हैं
जो चाटता हैं जिस्म को वो जानवर होता हैं
और जो चाहता हैं रूंह को वो ही मर्द होता हैं

6 responses to “मर्द”

  1. क्यों कहे ज़माना की हर जंग के पीछे औरत का हाथ हैं
    सच तो ये हैं कि बड़ी कमीनी मर्दों की ये जात हैं
    जो दिखायी अपनी जिद्द तो द्रोपदी भी बस एक दाँव हैं
    जो आई अपनी इज्ज़त बचाने पर तो सीता में भी पाप हैं

    sachchi bat kahi aapne…

    Like

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: