साल दर साल मेरे ख्याल बदलने लगे,
उमर जो बढ़ी तो बाल पकने लगे !
वो मासूमियत तो बचपन कब का अपने साथ ले गया,
अब तो लड़कपन के मुंहासे भी सूरत से झरने लगे !
वो माँ हैं जो कहती हैं कि मैं अब भी बच्चा हूँ,
वरना कुछ लोग तो मुझे अभी से बूढ़ा भी कहने लगे !
ये आईना ही हैं जो अपने दाम का पूरा हक अदा करता हैं,
दाढ़ी मुछे जो हटाई तो गा्ल गुलाबी चमकने लगे !
हम निकले जब भी ऐसे सज-धजकर शहर के बाजारों से,
हसिनाओ की नजर ना पड़ी पर बुजुर्ग जरूर बातें करने लगे !
कुछ समझाइश देने लगे, कुछ खरीद-फ़रॉख्त करने लगे,
गोयाकी हम इश्क़ खरीदना चाहते थे और वो शहनाई बेचने लगे !
यहाँ सब लोग कहते हैं कि तुम जवान हो गए ठाकुर
पर लोगो के ऐसे जोक मुझे हैरान करने लगे !
कुछ हैं जो बहुत पीछे छोड़ आये हैं हम
याद वो आता नहीं पर हम इंतज़ार करने लगे !
5 responses to “जवान”
Umda………Hai………….Janab………गोयाकी हम इश्क़ खरीदना चाहते थे और वो शहनाई बेचने लगे !
LikeLike
awesome thakur … nice .. super duper like 🙂
LikeLike
nice poem
LikeLike
क्या दौर आया है “सुन्नी” शहर ए मोहब्बत में
लोग वफा नीलाम करते है उधार की मोहब्बत के बदले
jsc
nic thakur sahab
LikeLike
Nice!!!!
LikeLike