मैं हमेशा ट्रेन में सबसे ऊपर वाली सीट लेना पसंद करता हु | और इसका ये कारण बिलकुल भी नहीं हैं कि मैं ऊपर वाली सीट पर लेटे-लेटे नीचे की सीट पर शयन कर रही ख़ूबसूरत लडकियों को निहार सकू |अजी, हमारा ऐसा नसीब ही कहाँ कि ख़ूबसूरत हसिनाओ का साथ मिले, हमारी किस्मत में तो हमेशा बूढ़े-अधेड़, मोटे-छोटे अंकल लोग ही फसते हैं | और ये अंकल लोग पूरी रात भर दूषित वायु भयानक विस्फोट के साथ छोड़ते रहते हैं | ऐसे में अगर आप इनके नीचे वाली सीट पर फंस गए तो समझ लीजिये कि पूरी रात अफगानिस्तान पर होने वाले अमेरिकी हमलो को याद करते हुए गुजारनी हैं | वैसे ऊपर वाली सीट पाकर भी आप विस्फोट की आवाज़ या बदबू से बच तो नहीं सकते पर ये सुकून जरूर रहता हैं कि बम सीधे-सीधे आपके ऊपर ही नहीं फेंका जा रहा हैं | हालाँकि हर बार ऊपर वाली सीट पर ही आरक्षण पाना थोडा मुश्किल होता हैं पर मैं इस मामले में थोडा खुशकिस्मत जरूर हूँ कि अधिकांश बार मुझे ऊपर वाली सीट पर ही आरक्षण मिल जाता हैं |
खैर, खुशकिस्मत तो मैं उस दिन भी बहुत था जब मेरा अहिल्या नगरी एक्सप्रेस का टिकट आखिरी दिन १०० वेटिंग से कन्फर्म हो गया | और सोने पर सुहागा मेरा सात दिनों का अवकाश भी एक झटके में स्वीकार हो गया | हमेशा की ही तरह ही मुझे ऊपर वाली सीट पर आरक्षण भी प्राप्त हुआ | पर इन सबमे सबसे बड़ा चमत्कार ट्रेन में टिकट पक्का होना ही था | अहिल्या नगरी एक्सप्रेस ट्रेन चेन्नई से इंदौर तक चलती हैं, और ऐसे में किसी का टिकट नागपुर से १०० वेटिंग से कन्फर्म होना वाकई मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी हैं | खैर वो कहते हैं ना कि “जब तू साथ चले, कैसे ना रास्ते मिले”, मेरे भी रास्ते की अडचने एक-एक करकर सभी ख़तम हो गयी और मैं अपना सामान पैक करके चल दिया इंदौर में छुट्टी मनाने | वैसे इस बार मेरा जाना इसलिए भी जरूरी था क्युकी अगले ही हफ्ते मेरे दोस्त गोविन्द की सगाई थी तो ऐसे में अपना पहुचना तो बनता हैं ना बॉस |
वैसे खुशकिस्मत-यो का सिलसिला यही पर ख़तम नहीं हुआ | जब मैं ट्रेन में पंहुचा तो देखा हमेशा के विपरीत मेरे सामने की सीट पर कोई अंकल्स नहीं, बल्कि तीन ख़ूबसूरत लडकियां बैठी हुई थी | अब मेरी हालत ऐसी थी की “मांग ले बेटा आज कुछ भी, खुदा बस बांटने के लिए ही बैठा हैं” | तीनो शायद चेन्नई से आ रही थी, पर दिखने में वो दक्षिण भारतीय नहीं लग रही थी और मोबाइल पर धारा-प्रवाह हिंदी भी बोल रही थी, इसी से मेने अंदाजा लगाया कि शायद वो अपने मध्य-प्रदेश की ही होंगी | यु तो वो शाम पांच बजे का ही समय था, पर तीनो लडकियों ने अपने शयन आसन खोले हुए थे | सबसे नीचे और मध्य वाली सीट पर लेटी दोनों लडकियाँ मोबाइल पर बात कर रही थी, वही सबसे ऊपर वाली सीट वाली लड़की लेटी-लेटी कोई किताब पढ़ रही थी | नीचे की सीट वाली दोनों लडकियाँ मोबाइल पर किसी लड़के (शायद बॉय-फ्रेण्ड) से बात कर रही थी, ये कोई भी उनके वार्तालाप सुनकर सरलता से अनुमान लगा सकता था | मध्य सीट वाली लड़की की शायद उस लड़के से नयी-नयी दोस्ती हुई होगी, इसलिए वो बहुत शर्माती-मुस्कुराती हुए बाते कर रही थी | वही नीचे वाली लड़की शायद लड़के को बहुत ज्यादा समय से जानती थी इसलिए वो जोर-जोर से चिल्लाते हुए लड़के से झगड़ रही थी | उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी की आसपास के सभी लोग सुन सकते थे की वो क्या बात कर रही हैं | “तुमने कल मुझे फोन क्यों नहीं किया” , “परसों की पूरी रात तुम कहा थे” , “क्या तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते” – इस तरह के संवाद काफी चिल्लाने (या यु कहे डाटने) के स्वर में बोले जा रहे थे | उसकी बाते सुनकर तो ऐसा लग रहा था की अगर वो लड़का सामने खड़ा हो तो शायद वो उसका क़त्ल कर दे या इतनी बाते सुनकर वो लड़का ही खुद ख़ुदकुशी कर ले |
ट्रेन अभी तक नागपुर शहर से आगे नहीं बढ़ी थी, इसीलिए दोनों लडकियों को अच्छा मोबाइल नेटवर्क मिल रहा था और इसीलिए दोनों मोबाइल पर लगी हुई थी | पर उन दोनों से बेखबर वहां एक तीसरी लड़की भी थी, जो शांत चित्त होकर सबसे ऊपर वाली सीट पर लेटे कोई किताब पढ़ रही थी | अभी दोनों लडकियों के सामने बैठकर उनकी बकबक सुनने में कोई मतलब नहीं था, दूसरा मैं भी थोडा थका हुआ था, इसलिए मैं भी उनके सामने अपनी सबसे ऊपर वाली सीट पर जाकर लेट गया | सोच इस बहाने सामने लेटी, किताब पढ़ती लड़की को ही देखा जाये | वैसे उसका कोई लफड़ा (बॉय-फ्रेण्ड) नहीं हैं, इतना मुझे विश्वास था | ऐसा इसलिए कि लड़की का रिलेशन-शिप स्टेटस वो खुद नहीं, उसका मोबाइल बताता हैं | अगर किसी लड़की का मोबाइल बजे और वो काफी हँसते-मुस्कुराते हुए बात करे तो समझ जाईये कि ये नया-नया प्यार हैं, या यु कहिये नया-नया खुमार हैं | और अगर किसी लड़की का मोबाइल बजे और वो जोर-जोर से चिल्लाते हुए, झगड़ते हुए या रोते हुए बाते करे तो समझ जाईये मामला सीरियस हैं, वो काफी समय से रिलेशनशिप में हैं | और अगर कोई लड़की खुद हर आधे घंटे में फ़ोन करे और केवल २ मिनट बात करे तो समझ जाईये की वो शादी-शुदा हैं | पर इन तीनो प्रकार से अलग थी मेरे बाजु वाली सीट पर लेटी लड़की | उसका मोबाइल बंद और किताब खुली थी | इसीसे मेने अंदाजा लगाया कि बेचारी का कोई सहारा (बॉय-फ्रेण्ड) नहीं हैं, इसीलिए किताबो से दोस्ती बढाई जा रही हैं |
वैसे बंद मोबाइल वाली उस लड़की की किताब का शीर्षक भी काफी रोमांचक था – “लव कैन हेप्पन टवाइस” | पहले बंद मोबाइल से मुझे लगा था कि उसका कोई (बॉय-फ्रेण्ड) नहीं हैं पर किताब का शीर्षक पढ़कर ऐसा लगा कि उसका अभी-अभी ब्रेक-अप हुआ हैं | वरना किताब का शीर्षक “लव कैन हेप्पन टवाइस” नहीं, “लेट्स डिस्कवर लव” होना चाहिये था | खैर वो प्यार पहली बार करे या दूसरी बार करे, करे तो सही | एक बार किताब के पन्नो से नज़र उठाकर सामने बैठे इस स्मार्ट, हेंडसम,कूल डूड को देखे तो सही | पर वो थी कि मेरे सारे अरमानो पर पानी डालते हुए किताब के पन्नो में ही प्यार ढूंड रही थी | वैसे ये सिचुअशन भी अपने लिए अच्छी ही थी, अगर लड़की हमसे पूरी तरह बेखबर हो तो हम भी बेशरम बनकर उसे अच्छे से निहार सकते हैं | और ये तो लड़की भी इतनी ख़ूबसूरत थी कि मैं अपनी किस्मत पर ये सोचकर ही गौरवान्वित हो रहा था कि मुझे उसके बाजु वाली सीट मिली | कभी वो दाई और करवट लेकर किताब पड़ती तो कभी करवट बदलकर बायीं और घूम जाती, और जब दोनों करवट से ऊब जाती तो सामने की और देखते हुए किताब पढने लगती | और जब भी वो अपनी पोजीशन बदलती अपने साथ कई सारी चीजों को सहलाती, जैसे अपने हाथ के कंगन को घुमाती, आँखों को बंद मुठ्ठिया से मलती, बालो को हाथो से सहलाकर आगे कंधे पर बिखरा देती, अपने टॉप को कमर से नीचे सरकाने की कोशिश करती और पैरो को करीने से समेटने लगती | यही बात मुझे लडकियों की बहुत अच्छी लगती हैं, हर काम को करीने से करती हैं, हर आदत में एक अदा रखती हैं | वरना देखिये लडको को, कोई गधे की तरह लौट लगाते हुए सोता हैं तो कोई कुत्तो की तरह एक टांग ऊपर रखकर सोता हैं |
मैं उस लड़की को देखते हुए ख्याली पुलाव पकाये ही जा रहा था कि अचानक मेरे मोबाइल में बीप-बीप की ध्वनि हुई | मोबाइल देखा तो गोविन्द का सन्देश था – “साले…तू मेरी सगाई में आ रहा हैं कि नहीं …जल्दी बता” | अभी गोविन्द को क्या हुआ, एकदम से ऐसा क्यों पूछ रहा हैं, मैं थोडा सोच में पड़ गया | ” हाँ, आ रहा हूँ …क्यों मेरे लिए कुछ खास इन्तेजाम कर रहा हैं क्या ?” मेने सन्देश का प्रतिउत्तर दिया और फिर सामने वाली लड़की की गतिविधि देखेने लगा | मैं उस लड़की को ऊपर से नीचे तक निहारे ही जा रहा था कि अचानक उस लड़की का करवट बदलना हुआ और उसकी नज़रें पन्नो से हटकर मेरे ऊपर चली गयी | वैसे मैं क्या, किधर और कैसे देख रहा था उससे ज्यादा जरूरी हैं आपका ये जानना की उस लड़की ने क्या किया | उसने मेरी तरफ नाराज नज़रो से देखा और अपने पास पड़ी चद्दर उठाकर ओढ़ ली | केवल सिर बाहर था किताब पढ़ने के लिए और हाथ बाहर थे किताब उठाने के लिए, बाकि पूरा शरीर चद्दर में ढक चूका था | नवम्बर का मौसम वैसे तो हल्का सर्द होता हैं, पर कोई शाम को पांच बजे नागपुर जैसे गर्म स्थान पर चादर ओढ़ ले इसका क्या मतलब होता हैं, ये मैं अच्छी तरह से समझ सकता था | मन में थोडा गुस्सा भी आया कि मैं कौन सा उस लड़की को इतना प्रदूषित नज़रो से देख रहा हूँ जो उसने अपने ताजमहल को चादर में छुपा लिया | पर मैं उस लड़की की मनोदशा भी समझ सकता हूँ, जब से देश में बलात्कार की घटनाये बढी हैं, लडकिया अपने तरफ उठने वाली हर नज़र को बलात्कारी के रूप में ही देखती हैं | खैर, लड़की के इस दांव से मुझमे थोड़ी बची-कुची शर्म का आगमन हुआ और मैं भी करवट बदलकर ट्रेन की बेरंग दीवारों को घूरने लगा |
इससे पहले की मेरा मन बेरंग दीवारों से ऊबता, मेरे मोबाइल में फिर से सन्देश-ध्वनि हुई | गोविन्द का सन्देश था – “नहीं, मैं तो ये बता रहा था …कि अगर तू नहीं भी आ रहा हो तो भी मैं सगाई कर लूँगा” | अभी मुझे यकीन हो गया कि गोविन्द का टाइम-पास नहीं हो रहा हैं, तभी वो मुझे भी पका रहा हैं | खैर अपना वक़्त भी उस समय कुछ मजे में नहीं कट रहा था तो सोचा गोविन्द से ही मन बहलाया जाये | ” तुझसे इससे ज्यादा की उम्मीद भी नहीं थी … पर मैं शादी और शादी के बाद भी तुझे परेशान करने जरूर पहुच जाऊंगा…वैसे भाभीजी का नाम-पता-फोटो कुछ तो बता” – मेने प्रतिउत्तर दिया और फिर बैरंग दीवारों को देखने लग गया | ट्रेन नागपुर शहर से आगे बढ़ चुकी थी और मोबाइल नेटवर्क के सिग्नल कमजोर हो चुके थे | नीचे बैठी दोनों लडकियों के मोबाइल जवाब दे चुके थे इसलिए वो मोबाइल बाजु में रखकर आपस में बातें करने लगी | कुछ देर पहले मोबाइल पर चिल्लाती-चीखती लड़की अब खिलखिलाकर बाते कर रही थी और मुझे आश्चर्य हो रहा था कि कोई इतनी जल्दी अपना मूड कैसे ठीक कर सकता हैं | अभी कुछ देर पहले तो गुस्से की पराकाष्ठा पर चढ़ी ये चंडी इतनी जल्दी मस्ती-मजाक के मूड में कैसे आ गयी | बरफ भी पिघलने में थोडा वक़्त लगाता हैं पर इंसानी मिजाज में ऐसा त्वरित परिवर्तन भौतिकी के हर नियम को गलत सिद्ध करता हैं |
दोनों लडकियों की बातो से मुझे पता चला की वो दोनों खिलाडी हैं और चेन्नई में कोई स्पर्धा में भाग लेकर लौटे हैं | गुस्से से बात करने वाली लड़की जीतकर लौटी हैं और मुस्कुराती हुई बात करने वाली लड़की हार कर लौटी हैं | अभी मुझे फिर से आश्चर्य हुआ, कोई विजयी होकर भी इतने गुस्से में क्यों था और कोई हारकर भी इतना कैसे मुस्कुरा रहा था | खैर किसी ने सच ही कहा हैं – ” वो गुस्सा तेरा झूठा था या ये मुस्कान सच्ची हैं | तू मंजिल हैं मेरी या सड़क अभी कच्ची हैं |” वैसे मेरी मंजिल उन दोनो में से कोई भी नहीं थी, मेरी नज़रे तो सबसे ऊपर लेटी हुई लड़की पर लगी हुई थी, पर उसकी नज़रे थी कि मेरे रंगीन चहरे को नज़रन्दाज करते हुए काले-सफ़ेद कागज़ के पन्नो पर जमी हुई थी | मैं अभी इस ख्याल को अंजाम ही दे रहा था की अचानक मेरे मोबाइल पर फिर से सन्देश-ध्वनि हुई | शायद ट्रेन किसी आबादी वाले क्षेत्र से निकल रही थी और मोबाइल को फिर से नेटवर्क मिलने लग गया था | गोविन्द का सन्देश था – ” भाभी का नाम अदिति हैं और ये उसकी फोटो हैं ” फोटो डाऊनलोड हो रहा था पर मुझे यकीन था की ये फोटो या तो कटरीना कैफ का होगा या फिर दीपिका पादुकोण का | पर मेरे कयासों को झूठ साबित करते हुए गोविन्द ने इस बार मुझे वाकई में भाभीजी का ओरिजिनल फोटो भेजा था | मोबाइल फिर से नेटवर्क खोता इससे पहले फोटो डाउनलोड हो गया और मेने जब फोटो देखा तो अपनी नजरो पर यकीन नहीं हुआ | फोटो की हुबहू शकल वाली लड़की मेरे सामने वाली सीट पर किताब पढ़ रही थी |
अब मेरी हालत ऎसी थी कि – “तुझे खुदा कहू या इन्सान ही मानू, तुझसे गले मिलु या तेरे पैरो में गिरूँ |” जिसे खुदा का नजराना मानकर मैं इतनी देर से नज़रे फाड़-फाड़ कर निहारे जा रहा था, वो नजराना तो था पर मेरे लिए नहीं,गोविन्द के लिये | अभी मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे अपनी पहचान सामने बैठी भाभीजी के सामने उजागर करू, और उजागर भी करू कि नहीं क्युकी अभी तक वो मेरे बारे में कुछ अच्छा नहीं सोच रही होंगी | पर कुछ भी करने के पहले पुष्टि करना जरूरी था | मेने फोटो को दाये से मिलाया, बायीं तरफ से मिलाया, हर तरफ से सामने बैठी लड़की हुबहू वही थी | फिर मेने उसके सामान में बेडमिन्टन का रेकेट देखा तो मुझे याद आया कि गोविन्द ने मुझे बताया था कि भाभीजी बेडमिन्टन की खिलाडी हैं | और अब अगर नीचे बैठी दोनों लडकियाँ चेन्नई से खेलकर लौटी हैं तो ऊपर बैठी भाभीजी भी इनके साथ चेन्नई से खेलकर ही लौटी होंगी | नीचे वाली लडकिया भी उन्हें अदिति कहकर बुला रही थी | इन सब बातो से मुझे पक्का यकीन हो गया की वो और कोई नहीं बल्कि होने वाली भाभीजी ही हैं |
अभी मुझे ३ इडीयट फिल्म का एक द्रश्य बहुत याद आ रहा था | ” ह्यूमन बिहेवियर के बारे में हमने उस दिन कुछ जाना, दोस्त फ़ैल हो जाये तो दुःख होता हैं लेकिन दोस्त फर्स्ट आ जाये तो ज्यादा दुःख होता हैं ” | मेरे मामले में ये मसला परीक्षा परीणाम का नहीं, लड़की का था | “दोस्त की ज़िन्दगी में कोई लड़की ना हो तो दुःख होता हैं पर दोस्त को इतनी ख़ूबसूरत मंगेतर मिल जाये तो ज्यादा दुःख होता हैं ” | वैसे भी कहाँ इतनी ख़ूबसूरत, खिलाडियों जैसी चुस्त-दुरस्त काया वाले अमीर भाभीजी और कहा आँखों पर मोटा चश्मे पहने, पेट पर एक ऊँगली अतिरिक्त चर्बी चड़ाए हमारा गरीब सॉफ्टवेयर इंजिनयर दोस्त | ऐसी जोड़ी कैसे बन गयी, ये सोचकर मैं हैरान था | वैसे मैं कितना भी हैरान-परेशान हो लू पर एक बात तो तय थी कि सामने बैठी लड़की अपनी भाभीजी हैं और अब भाभीजी को केवल भाभीजी की नज़रो से ही देखना हैं | वैसे भी ये दुःख-जलन बस एक पल की प्रतिक्रियाये हैं, दिल में तो दोस्त के लिए ख़ुशी और अच्छी भावनाए ही थी |
वैसे मुझे अपने दोस्त के लिए ख़ुशी इस बात से भी थी की भाभीजी ऊपर बैठी हुए लड़की ही निकली, नीचे मोबाइल पर बात करने वाली नहीं | सबसे ऊपर बैठी भाभीजी तो मुझे भी शुरू से ही बहुत पसंद थी, अब वो मेरी भाभी बने या मेरे दोस्त की, भाभी बने तो सही | एक और बात की ख़ुशी थी की भाभीजी का केरेक्टर भी साफ हैं, अपने दोस्त के अलावा उनकी ज़िन्दगी में कोई नहीं, वरना अभी तक तो कितनी बार मोबाइल आ जाता और अपनी मोबाइल थ्योरी से मुझे सब कुछ पता चल जाता | इतना सब सोचकर मुझे लगा कि अब मुझे भाभीजी को अपनी पहचान बता देना चाहिए, आखिर गोविन्द अपने खास दोस्तों में से हैं | मैं भाभीजी को कुछ कहने के लिए शब्द ही ढूंड ही रहा था कि भाभीजी ने किताब बाजु में रख दी और कुछ सोचने लगी | थोड़ी देर सोचकर उन्होंने मोबाइल उठाया और किसी को कॉल किया | “गाड़ी बैतूल स्टेशन पर पहुचने ही वाली हैं, तुम आ रहे हो न मिलने” भाभीजी ने फोन लगाकर सामने वाले से कहा | “ठीक हैं, मैं S-6 डिब्बे में हूँ, वही मिलती हूँ” इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया | कुछ ही देर में ट्रेन बेतुल स्टेशन पर जाकर खड़ी हो गयी | भाभीजी अपनी सीट से नीचे उतरे, अपने बैग में से गिफ्ट जैसा पैक सामान निकला और बाहर प्लेटफार्म पर जाकर खड़े हो गए |
वैसे मुझे जासूसी करना कभी भी अच्छा नहीं लगता पर अब अपने दोस्त के सुरक्षित भविष्य और अपनी आशंकाओ को मिटाने के लिए सच्चाई का जानना जरूरी था | मैं भी बैतूल स्टेशन पर भाभीजी के पीछे-पीछे उतर गया और उन पर नज़र रखने लगा | कुछ ही मिनटों में वहा एक लड़का आया और वो भाभीजी से बाते करने लगा | लड़का देखने में कोई २४-२५ साल का लग रहा था, ६ फिट लम्बा गोरा-चिकना और बॉडी-बिल्डर टाइप भी था बिलकुल जॉन इब्राहीम की तरह | भाभीजी ने वो गिफ्ट जैसा पैकेट उसे दिया और बदले में उसने भाभीजी को केडबरी की १० रुपये वाली चोकोलेट दी | दोनों ट्रेन के चलने तक हँसते हुए बाते कर रहे थे | पाच मिनट के स्टॉप के बाद ट्रेन ने चलने का सिग्नल दिया और भाभीजी उसको बाय कहकर फिर से अपनी सीट पर आकर बैठ गयी | उनके ही पीछे-पीछे मैं भी अपनी सीट पर आकर बैठ गया | अभी भाभीजी मेरे सामने उस लड़के की दी हुई केडबरी खाने लगे | मन तो हुआ कि भाभीजी से अभी कहे की फेंको ये चोकोलेट, मैं अभी आप को अपने दोस्त की तरफ से १०० रुपये वाली बड़ी केडबरी लाकर देता हूँ, पर अब कहे भी तो किस मुँह से | जैसे-जैसे ट्रेन आगे की और बढ़ रही थी, भाभीजी की केडबरी ख़तम हो रही थी और मेरा मन भी आशंकाओ के बादल से निकलकर कुछ सकारात्मक सोचने की कोशिश कर रहा था | ” हो सकता हैं वो लड़का सिर्फ दोस्त हो या जान-पहचान वाला या रिश्तेदारी वाला हो, हो सकता हैं की वो उनका कोई दूर का भाई हो, दोनों का गोरा रंग और चेहरा भी मिल रहा था, वैसे भी भाभीजी का उसके साथ कोई चक्कर होता तो वो मोबाइल थ्योरी के अनुसार उससे मोबाइल पर घंटो बाते कर रही होती, इस तरह किताबे नहीं पढ़ रही होती|” मन को ऐसी बातो से मेने समझाया की ऐसा कुछ नहीं जैसा मैं सोच रहा हूँ पर आशंका का बीज मन में बो चूका था और अब उसका समाधान होना अति-आवश्यक था |
आशा और आशंका की उस उधेड़बुन में तकरीबन एक घंटा बीत चूका था और ट्रेन बैतूल से इटारसी आ पहुची थी | इटारसी में ट्रेन रात के कोई ९ बजे पहुची थी और ट्रेन में बैठे अधिकांश लोग अपने रात्रि-भोजन में व्यस्त थे | मेने अभी तक भाभीजी को अपनी पहचान नहीं बतायी थी पर अभी तक मैं भाभीजी और गोविन्द का विचार भी मन से निकाल नहीं पाया था | सोचा आशंकाओ को क्यों ना बातचीत से मिटाया जाये , भाभीजी को अपनी पहचान बतायी जाई और उनसे बाते की जाये | और फिर बातो ही बातो में उनसे उस लड़के के बारे में पूछ लिया जाये, क्यों मैं मन ही मन अकेले ही घुटकर अपना वज़न कम करू | ये विचार मुझे सबसे अच्छा लगा और मैं भाभीजी को अपनी पहचान बताने को तैयार हो गया | पर इससे पहले मैं कुछ बोलता भाभीजी ने फिर से मोबाइल उठा लिया – “हेल्लो, मैं S-6 डिब्बे में हु, जल्दी आ जाओ मिलने”, ट्रेन इटारसी स्टेशन के आउटर पर खड़ी थी जब भाभीजी ने किसी को ये कॉल किया | अभी मेने अपनी कुछ देर पहले बनायीं बातचीत की योजना को रद्द किया और भाभीजी के हाव-भाव देखने लगा | कुछ ही मिनटों में ट्रेन इटारसी स्टेशन के प्लेटफार्म पर जाकर खड़ी हो गयी | भाभीजी फिर अपनी सीट से उतरे और वैसा ही गिफ्ट अपने बैग से निकाला | फिर वो बाहर जाकर खड़े हो गए | बाहर एक लड़का उनका पहले से ही इंतज़ार कर रहा था | ये लड़का भी पिछले वाले की ही उम्र का होगा, कद ५’१०”, लम्बे बाल और गोरा रंग | उसका चेहरा कुछ-कुछ शाहिद कपूर के जैसा ही चोकोलेटी था | वो भाभीजी से बात करते हुए थोडा शरमा भी रहा था पर भाभीजी उससे काफी खुलकर मुस्कुराते हुए बात कर रही थी | इस बार भी भाभीजी ने उसे वैसा ही गिफ्ट दिया और बदले में उस लड़के ने भाभीजी को २० रुपैये वाली केडबरी चोकोलेट दी | पांच मिनट की उस छोटी पर प्यार भरी मुलाकात के बाद भाभीजी फिर से ट्रेन में अपनी सीट पर आकर बैठ गए और ट्रेन इटारसी स्टेशन से आगे बढ़ गयी |
मन तो फिर से हुआ की अभी भाभीजी से कहे कि फेंको ये चोकोलेट, मेरा दोस्त आपको शादी के बाद अमेरिका की चोकोलेट खिलायेगा पर वही कहे तो किस मुँह से | अभी मेने तय किया की अपनी पहचान गुप्त रखता हूँ और भाभीजी पर पूरी नज़र रखता हूँ | वैसे इस तरह अपनी होने वाली भाभीजी पर नज़र रखना अच्छा तो नहीं लग रहा था पर क्या करे, अपने दोस्त की इज्ज़त अब बस मेरे ही हाथो बच सकती थी, और मैं दोस्ती निभाने का ये मौका बिलकुल हाथो से नहीं जाने देना चाहता था | भाभीजी ट्रेन में आकर फिर से अपनी पुस्तक में खो गयी | अभी मुझे उनके यही किताब पढने का मतलब समझ आया – “लव कैन हेप्पन टवाइस” | बैतूल और इटारसी जैसी छोटी जगहों पर ही टवाइस टाइम लव तो हो ही चूका था और अभी भी ट्रेन को भोपाल, उज्जैन और इंदौर जैसे बड़े स्टेशन पर पहुचना बाकि थी | खैर थोड़ी ही देर में जिस बात से मन डर रहा था वही हो गया | ट्रेन रात को १० से ११ बजे के दरमियाँ भोपाल पहुची | जो लोग भोपाल में रहते होंगे या वहां गए होंगे वो जानते होंगे की भोपाल में दो स्टेशन हैं – हबीबगंज और भोपाल मुख्य | हमारी ट्रेन हबीबगंज में तो ५ मिनट ही रुकी पर इन पांच मिनट में भी भाभीजी का आशिक (कहते हुआ बुरा लग रहा हैं, पर क्या करे ) आ गया | लड़का थोडा सावला सा था और थोडा दुबला भी था | अगर मैं किसी बॉलीवुड हीरो से कम्पैर करू तो वो बिलकुल दक्षिण के सुपर स्टार धानुष जैसा दिख रहा था | भाभीजी के आशिको में अब बनारस का रान्झाना भी शामिल हो गया था | उसे भी भाभीजी ने गिफ्ट दिया और उसने भाभीजी को रिटर्न में फिर से चोकोलेट दी | अभी चोकोलेट का साइज़ भी बाद गया था, शायद वो ५०-६० रुपये की होगी | बड़े शहरो में आकर चोकोलेट का साइज़ भी बढ़ रहा था |
हबीबगंज के बाद ट्रेन भोपाल मुख्य स्टेशन पर पहुची | जॉन इब्राहीम, शाहिद कपूर और धानुष के बार अब बारी रणबीर कपूर की थी | भोपाल मुख्य स्टेशन पर भाभीजी से मिला लड़का रणबीर कपूर जैसा ही गोरा-चिट्टा और लम्बा – पूरा था | वो भाभीजी से काफी खुला हुआ भी लग रहा था | ट्रेन भोपाल मुख्य स्टेशन पर पुरे २० मिनट रुकी और इन २० मिनटों में वो लड़का भाभीजी के साथ खूब हंस-हंस कर बाते करता रहा | उसे भाभीजी ने दौ गिफ्ट दिए और उसने भी भाभीजी को १०० रुपये वाली बड़ी केद्बेरी दी | अभी तो मन हुआ की भोपाल के इस सावंरिया को भोपाल के ही बड़े तालाब में जाकर डुबो दे, पर कर क्या सकते थे | अभी मेरे मन में मेरे बेचारे दोस्त के लिए बहुत अफ़सोस हुआ, कहाँ थोडा सा मोटा, आलसी, निकम्मा और सॉफ्टवेयर की नौकरी का मारा मेरा सीधा-साधा, भोला-भाला गरीब दोस्त, और कहाँ इतने ख़ूबसूरत भाभीजी और उनके इतने हेंडसम आशिक | कैसे मेरा अमोल पालेकर दोस्त इन नए हीरो से मुकाबला कर हीरोइन को पटायेगा |
ट्रेन ११ बजे तक भोपाल से निकल चुकी थी | ट्रेन के सारे यात्री सो चुके थे या सोने की तैयारी कर रहे थे | भाभीजी भी किताब बंद करके सो रही थी | मुझे भी नींद आ रही थी तो मैं भी भाभीजी से नज़रे हटाकर आँखे मूंदकर सो गया | रात में ट्रेन में कोई हलचल नहीं हो रही थी और मुझे बड़े आराम से गहरी नींद आ गयी | कुछ घंटो बाद मेरी नींद खुली तो वो रात कोई २-३ बजे की बात होगी | ट्रेन शुजालपुर स्टेशन पर रुकी हुई थी और मेरी सोच के विपरीत शुजालपुर जैसे छोटे से स्टेशन पर भी कोई लड़का भाभीजी से मिलने आ गया | अभी तो मेरी पूरी नींद उड़ गयी और मैं चोरी से भाभीजी और उस लड़के को देखने लगा | वैसे ये लड़का दिखने में पूरा रणवीर सिंह जैसा फालतू और फुकरा दिख रहा था, पर भाभीजी ने उससे भी सब जैसा ही बर्ताव रखा | उसे भी गिफ्ट दिया और उससे भी चोकोलेट ली | अभी मैं और भी चौकन्ना हो गया और सोने की बजाय भाभीजी पर नज़र रखने लग गया, क्योंकी एक घंटे बाद ही उज्जैन स्टेशन आने वाला था | मैं आँखे खोलकर उज्जैन आने का इंतज़ार करने लगा, पर भगवान् महाकाल की कृपा से उज्जैन में ऐसा कुछ नहीं हुआ, मतलब भाभीजी से मिलने कोई नहीं आया और उज्जैन जैसी पवित्र नगरी की पवित्रता बरक़रार रही | और इस तरह कुल पांच विभिन्न स्टेशन पर ” लव केन हेप्पन टवाइस, थ्राईस, फोर-स और फिफ्थ” टाइम करते हुए भाभीजी और मैं सुबह ६ बजे इंदौर स्टेशन पर पहुच गए |
इंदौर स्टेशन ट्रेन का भी आखिरी स्टॉप था तो सभी यात्री ट्रेन से उतर रहे थे | मैं भी अपना सामान लेकर नीचे उतरा तो देखा भाभीजी इंदौर में तीन लडको से बात कर रही थी | उन्हें भी भाभीजी ने गिफ्ट दिया और उनसे चोकोलेट ली | अभी मेने अपना मोबाइल निकाला और अपने दोस्त गोविन्द को फोन करने लगा | हालाँकि उससे क्या कहूँगा ये मुझे समझ नहीं आ रहा था, अभी ये तो नहीं कह सकता ना कि अगर इस लड़की से तेरी शादी हुई तो तेरी सौतन मध्य प्रदेश के हर स्टेशन पर मिल जाएगी (या जायेगा) | पर उसे सब बताना जरूरी था, तीन दिनों बाद उसकी सगाई हैं और आज तो वो शोपिंग के लिए भी जाने वाला था | अगर ये सब कुछ आज ही क्लियर हो गया तो बेचारे के खरीददारी के पैसे भी बच जायेंगे | खैर, मेने फोन लगाया और ठन्डे दिमाग से उसे पूरी बात बतायी | उसका दिल भी बैठ गया और उसने कहा की वो अभी भाभीजी से बात करके सब कुछ पता करता हैं | मेने गुजारिश कि मेरी पहचान और नाम गुप्त रखा जाये अन्यथा अगर उसकी शादी हो गयी तो मैं भाभीजी के सामने हमेशा असहज ही रहूँगा |
गोविन्द को कॉल करके मैं इंदौर स्टेशन पर ऑटो देखने में लग गया | कुछ ही देर में मेने देखा की ऑटो स्टैंड पर उन तीन में से दौ लड़के खड़े थे | उन्होंने मेरे सामने ही उस गिफ्ट को फाड़ा और मेने देखा कि उसके अन्दर से चमचमाता हुआ मैडल निकला | मेने सोचा गोविन्द अपना दोस्त हैं, भाभीजी भी अपने होने वाले भाभीजी हैं, पर ये लड़के तो थर्ड पार्टी हैं , क्यों न इनसे जाकर कोई जानकारी निकाली जाये | मैं उन लडको के पास गया और पूछा कि ये मैडल उन्हें क्यों मिला हैं, तब उन्होंने मुझे बताया कि वो मध्य प्रदेश बास्केट-बॉल टीम के सदस्य हैं और ये मैडल उन्हें चेन्नई में हुई स्पर्धा में मिला था | मध्य-प्रदेश उस स्पर्धा में दुसरे स्थान पर रहा था | अभी मुझे गिफ्ट की गुत्थी तो समझ में आने लगी थी पर बात पूरी तरह से साफ नहीं हुई थी | मेने उनसे पूछा की क्या वो लोग भी अभी-अभी अहिल्या एक्सप्रेस से लौटे हैं तब उन्होंने मुझे बताया कि नहीं, वो लोग अपने मैडल चेन्नई में ही भूलकर आ गए थे, ये तो अभी अदिति मैडम वहां बेडमिन्टन स्पर्धा में गये थे तो वो लेकर आ गयी | अभी मुझे गिफ्ट और लडको के बारे में सब कुछ समझ आ गया था पर ये पक्का नहीं था की ट्रेन में मिले सभी लड़के बास्केटबॉल टीम के ही सदस्य थे | मेने उनसे कहा कि आपकी टीम में बस आप दौ ही लोग थे तब उन्होंने बताया की उनकी टीम में मध्यप्रदेश के विभिन्न शहरो के खिलाडी थे जैसे इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, रीवा …यहाँ तक की इटारसी और शुजालपुर से भी खिलाडी थे, पुरे १० लोगो की टीम थी मध्य-प्रदेश की | इतना कहकर वो दोनो लड़के ऑटो में बैठकर वहा से चले गये |
अभी मुझे यकीन हो गया कि ट्रेन में मिले सभी लड़के बास्केटबॉल टीम के सदस्य थे और सभी भाभीजी से अपने मैडल लेने आये थे | मेरा सिर तो जैसे शर्म से झुक गया – कैसे मेने क्षिप्रा की तरह पवित्र और इन्दोरी सेव जितने सीधे भाभीजी के बारे में क्या-क्या नहीं सोच डाला | मन में विचार आया की क्यों न इस पाप के प्रायश्चित के लिए घर जाने से पहले खान-नाले में डुबकी लगा ली जाये | पर कुछ करने के पहले दोस्त को सच्चाई बताना जरूरी था | उस बेचारे के गुलशन में तो फूल खिलने के पहले ही कांटे बिछना शुरू हो चुके थे | मेने गोविन्द को सब कुछ बताने के लिए कॉल किया पर जैसे वो पहले से ही सब कुछ जान गया था | जैसे ही मेरा कॉल लगा उसने जोर-जोर से हँसना शुरू कर दिया | मैं उसे कुछ बताता उसने ही हँसते हुए मुझे बास्केटबॉल टीम और उनके मैडल की पूरी कहानी बता दी | उसने ये भी बताया की भाभीजी ने उनके टीम के कप्तान को मजाक में कहा था की मैडल लेने के लिए उन्हें चोकोलेट खिलानी होगी तो कप्तान के आदेशानुसार सभी खिलाडी उनके लिए चोकोलेट लेकर आये | अभी मुझसे कुछ न उगलते हुए बन रहा था ना निगलते हुए, पर दिल में दोस्त के लिए ख़ुशी जरूर हो रही थी | और गोविन्द था की भाभीजी को ट्रेन में मिली हुई चोकोलेट खा रहा था और हँसे जा रहा था | मेने उससे कॉल काटने के पहले पूछा कि उसने मेरे बारे में भाभीजी को बताया तो नहीं कि तुझे ये सब मेने बताया हैं | जवाब में वो देर तक कुटिल तरीके से हँसता रहा और बोला कि उसने मेरा नाम-पता-चेहरा सब कुछ भाभीजी को बता दिया हैं और उसने फोन कट कर दिया | मैं भी ऑटो में बैठकर अपने घर की और चल दिया | वैसे मेरे मन में विश्वास था की गोविन्द अपना अच्छा दोस्त हैं, उसने भाभीजी को मेरे बारे में कुछ नहीं बताया होगा, वो ऐसे ही मजाक में मुझसे कह रहा हैं कि उसने भाभीजी को सब कुछ बता दिया हैं | पर अच्छे दोस्तों की नीयत में कब कमीनेपन की खोट आ जाये कुछ कहा नहीं जा सकता | वैसे गोविन्द कितना भी बड़ा कमीना हो या ना हो, पर साला समझदार जरूर हैं, आखिर उसने इतने मस्त भाभीजी को अपने जीवनसाथी के रूप में जो पसंद किया था |
8 responses to “भाभी-जी ट्रैन में है !”
excellent sirji..awesome
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Thakur… Bahut umda likha hai Bhai.. and moral bhi hai is story me…
Excellent keep it up 🙂
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fine
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Bht achi story h ……
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tera ye experience acha laga 🙂
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Nice Writeup Bro..Reading it in Hindi make it more worth.. 🙂
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Thanks Harsha…yes, I used Hindi only to gave this story ground desi touch 🙂
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Extraordinary, Interesting, you can’t stop without reading whole story.
Really nice !
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