गीत : वो मंजिल मुझे मिलेगी जरूर …


आसमानों से आगे और क्षितिज से दूर,
वो मंजिल मुझे मिलेगी जरूर …
रब की होगी रजामंदी उसमे,
और किस्मत को भी होगी कुबूल !
वो मंजिल मुझे मिलेगी जरूर …

सामने हैं समंदर मेरे पर कश्ती हैं बहुत दूर
लहरों की गुजारिश हैं संग खेलना हैं जरूर !
लगने दे डर थोडा, होने दे थोड़ी भूल
सैलाबों से लड़ना हैं तो हिम्मत भी दिखानी होगी जरूर !
कश्तियो सी डोलती और किनारों से दूर
वो मंजिल मुझे मिलेगी जरूर …

बचपन में सुनी थी एक कहानी मशहूर
जो रखता हैं धीरज वही जाता हैं दूर !
फूल तो मुरझाकर हो जाता हैं चूर
पर ये खुशबू उसकी हो जाती हैं मशहूर !
उस फूल सी कोमल और खुशबू से भरपूर
वो मंजिल मुझे मिलेगी जरूर …

पानी की खोज में गड्डा खोद रहा एक मजदूर
मिट्टी के ढेलो से पता पूछ रहा एक मजदूर !
जो मिल जायेगा पानी तो जी जायेगा ये मजदूर
वरना अपनी कबर तो खोद रहा ही ये मजदूर !
उस पानी सी बेशकीमती और कब्र सी निष्ठूर
वो मंजिल मुझे मिलेगी जरूर….

वो मंजिल मुझे मिलेगी जरूर !
रब की होगी रजामंदी उसमे,
और किस्मत को भी होगी कुबूल !
वो मंजिल मुझे मिलेगी जरूर …

5 responses to “गीत : वो मंजिल मुझे मिलेगी जरूर …”

  1. Very nice
    agar aapko jyada comment chahiye to agli kavita likhna pardega jarur..
    Kya aapki agli kavita milege jarur….

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  2. Very nice .
    agar aapko jyada comment chahiye to agli kavita likhna pardega jarur..
    Kya aapki agli kavita milege jarur..

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