रूखे हाथो ने क्या सजावट की हैं
कि आज फिर कोरे पन्नो पे लिखावट की हैं
सर्द हवाओ ने मेरी चौखट पे ये आहट की हैं
कि अल्फाज़ ही अब एक चीज़ राहत की हैं
समेट लू धूप कि अब इसकी आदत सी हैं
या ओढ़ लू अंगारे कि अब बात सेहत की हैं
मुझसे ना पूछो मैंने ना कभी मोहब्बत की हैं
क्या जानू आशिको को किस मौसम ने राहत दी हैं
हमने तो अपनी ज़िन्दगी में यही इबादत की हैं
चार लफ्ज़ और एक अहसास से हमेशा चाहत की हैं
‘ठाकुर’ तुम्हारी गज़लों ने जब से सर्दियों की सोहबत की हैं
हर शख्स ने इस मौसम की हमसे शिकायत की हैं
2 responses to “मौसम”
चार लफ्ज़ और एहसास उनके हों तो ये मुहब्बत भली है …
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Awesome presentation
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