बादलो में छिपा दी हैं मेने चाँद की तिजोरी
बारिश तक तो ना पकड़ी जायेगी अब मेरी चोरी
चाँद को भी खबर नहीं और बादलो को भी नहीं हैं जानकारी
इतनी शातिर तरीके से की हैं मेने ये कारीगारी
वैसे चाँद की तिजोरी में नहीं हैं हीरे मोती जवाहरी
उसकी तिजोरी में तो हैं बस एक गुलाबी गठहरी
और उस गठहरी में बंद हैं एक सुनहरी परी
जिसके इंतज़ार में रहता हूँ मैं हर घडी
मैं इन्तेज़ार में हूँ की कब लगेगी बारीशो की झडी
और बूंदों के संग आ जायेगी आसमान से वो परी
सोचता हूँ जो होती मेरे पास एक लम्बी छड़ी
बादलो को हिलाकर सारी बुँदे गिरा देता इसी घडी
पर फिर सोचता हूँ की दुर्घटना से देर भली
कही मेरे प्रहार से घायल ना हो जाये वो परी
नाज़ुक हैं वो मोम सी और चखने में हैं गुड की डली
अरमान हैं वो आसमान का और सितारों के संग हैं पली
मिटटी से रंग में मेरे छाई हैं वो बन कर धुप सुनहरी
अब तो आखो में भी रहने लगी हैं वो दिलकश दुपहरी
खुश था खुदा भी मुझसे जो उसने भर दी मेरी झोली
तमन्ना की मोती की और मिल गयी मुझे चाँद की तिजोरी
दुआओ से आप सबकी मेरी हो जाएगी एक दिन वो सुनहरी परी
तब तक के लिए इज़ाज़त चाहूँगा मैं एक चोर अजनबी
3 responses to “चाँद की तिजोरी”
वाक़ई बहुत कुछ छिपा रखा है चाँद की तिजोरी में… बहुत सुन्दर…
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Amazing imagination, very Sweet and beautiful lines..!!
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n Wonderful n vivid imagination… Beautifully written
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