दर्द अपना अपना …


(निर्देश :- इंदौर-उज्जैन सड़क मार्ग पर देखी गयी सत्य घटना पर आधारित कहानी)

१००-१२० की रफ़्तार से दौड़ रही गाडियों की गति अचानक ही उस मोड़ पर कम हो रही थी | हर कोई गति धीरे करके उस नज़ारे को निहारता, फिर गाड़ी साइड से निकालते हुए आगे बढ़ जाता | दूर से देखने पर लगता था की कुत्तो के पिल्लो का झुण्ड वहाँ सड़क के बीचोबीच ऐसे ही जमा हो गया हैं | पर पास आने पर दिखाई देता हैं की उनके बीच उन पिल्लो की माँ भी बैठी हुई थी, और उसके नज़दीक ही रखा हुआ था एक नन्हे से पिल्लै का मृत शरीर | वो पिल्ला शायद किसी तेज़ गति की गाड़ी के नीचे आ गया होगा | पेट की आंते बाहर आ गयी थी, सड़क पर कुछ खून भी फ़ैल गया था, शरीर पूरा अकड गया था और वातावरण में भयानक बदबू फैली हुए थी | पर इतने पर भी वो पिल्लो का झुण्ड और उनकी माँ वहाँ से जरा सा भी सरकने को तैयार नहीं थे | वहाँ से निकल रही गाडियों में बैठी संभ्रांत महिलाये अपनी नाक पर रुमाल रखकर बड़ी घृणा से वो द्रश्य देख रही थी | और पुरुष तो ऐसे देख रहे थे जैसे ये उनके लिए रोज की बात हो | कुत्ते के उस छोटे से पिल्लै को सहानुभूति से देखने पर शायद उनकी पौरुषता पर दाग लग जायेगा | पर इस सब से बेखबर इन दुखहारियो पर गाडियों के हार्न से ना कुछ फर्क पड़ रहा था, ना ही तेज़ गति से आ रही गाडियों के नीचे आ जाने जाने का उन्हें कोई भय था | ना वहा कोई भौक रहा था, ना वहाँ कोई रो रहा था | बस माहौल में अजीब सी शांति फैली हुई थी, जो किसी के लिए अचरज का प्रतीक थी तो किसी के लिए दर्द का प्रतीक |

अचानक वहाँ एक बस रुकी और कुछ यात्री उतरे | बस के कंडक्टर ने एक पत्थर उस झुण्ड पर दे मारा | कुछ पिल्लै झुण्ड को छोड़कर इधर-उधर दौड़ाने लगे | बस से उतरे एक यात्री ने दूसरा पत्थर फेककर बाकि झुण्ड को भी वहाँ से हटाने की कोशिश की | अभी सारे पिल्लै वहाँ से भाग चुके थे | पर उन पिल्लो की माँ अभी भी बैठी हुए थी, अकेली उस मृत शरीर को चुपचाप टकटकी लगाकर देखते हुए | शायद शोकाकुल माँ को अभी भी ये उम्मीद थी की सड़क पर फैली ये आँते सिमटकर पेट में चली जायेंगी और पिल्ला फिर से खड़ा हो जायेगा | अभी कंडक्टर ने तीसरा पत्थर मारा जो सीधे कुतिया को लगा | ड्राईवर भी बस उसके सामने लाकर जोर-जोर से हार्न बजाने लगा | अभी कुतिया को भी अपने दिल पर पत्थर रखकर वहाँ से उठकर जाना पड़ा, पर उसकी अत्यंत धीमी चाल और मुड-मुड़कर पीछे देखना ये बता रहा था की वो वहाँ से कही और जाने को कतई तैयार नहीं हैं | कुतिया सड़क के किनारे जाकर खडी हो गयी और वही से पिल्लै को निहारने लगी | बस के गुजर जाने पर उसने वापस अपने स्थान पर आने की कोशिश की, पर पीछे से आ रही निरंतर गाडियों ने ये मुमकिन नही होने दिया | अभी वो किनारे पर खडी होकर पिल्लै के शव की निगरानी करने लगी | एक तेज़ गति की गाड़ी पिल्लै के सीधे पेट पर से गुजरी और उसकी बची कुची आँते भी बाहर आकर बिखर गयी | इसके बाद तो गाड़िया निरंतर उस मृत पिल्लै के चिथड़े उड़ाने लगी | पर वो कुतिया काफी देर तक चिलचिलाती धुप में सड़क के किनारे खडी होकर मृत शरीर को देखती रही की शायद किसी पल तो ये खून और आँते सिमटकर शरीर के अन्दर चली जाये और वो मृत पिल्ला पुनः जी उठे …

8 responses to “दर्द अपना अपना …”

    • Hi Shilpa,

      Thank you very much for your visit at my blog and such wondeful comment. Yes, ofcourse…animals do have emotions and sometime i think those are more pure and honest then human.
      Do visit the blog and happy reading !
      Once again thanks for appreciating my words.

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  1. Is raftaar bhari jindgi me ek insaan ka dusare insaan ke prti tk samvedanaayen marti ja rahi….us tadpti maa ka antarnaad kaun sune…kuun samjhe……!

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  2. Very nice, it’s tuched my heart.
    And the most important thing is that may be my english is not good but I have read the entire story in one breath. The way you wrote it’s very simple very clear what you want to say.

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