लघु कथा – आजकल तो बस फौग चल रहा हैं !


यू तो मध्य भारत का इंदौर शहर शुष्क स्थानों की गिनती में आता हैं, पर नवम्बर से जनवरी के बीच यहाँ भी अच्छी खासी ठण्ड का असर देखने को मिलता हैं | दिसम्बर के आखिरी दिनों में तो ये बिलकुल शिमला बन जाता हैं | गजब का कोहरा और सर्दी के आगोश में हर कोई ठिठुर जाता हैं | उस दिन भी कुछ ऐसा ही माहौल था, मुझे कुछ काम से सुबह ७ बजे ही शहर से बाहर जाना था | सुबह इतनी जल्दी उठकर नहाना और मोपेड चलाकर बस स्टेशन पहुचना ही बहुत दुष्कर कार्य था, पर मुझे तो अपनी सरकारी नौकरी का कर्तव्य पूर्ण करना ही था | सुबह उठने और नहाने में जरुर थोड़ी मुश्किल आई, पर बस में बैठकर बाहर का दृष्य देखा तो लगा कि प्रकृति के इस रूप को देखने के लिए इतना करना तो बनता हैं | पुरे साल में केवल २ या ४ दिन ही होते हैं जब शहर में इतना घना कोहरा होता हैं | बस में खिड़की वाली सीट पर बैठकर तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गयी | बस में दूसरी सवारी बैठ रही थी कि मेरे पास वाली सीट पर मेरे सहकर्मी मिश्रा जी आकर बैठ गए | वो भी बेचारे मेरी ही तरह इतनी सर्दी में अपनी नौकरी करने जा रहे थे | बस ने शहर की सीमा को पार किया और खिड़की के बाहर का नजारा तो और भी मनोरम होने लगा | हरे भरे पेड़-पौधों और खेतो पर जैसे किसी ने सफ़ेद चादर औढ़ा दी हो | जाने क्यों नींद के चक्कर में प्रकृति के इस रूप को देखने से मैं इतने दिनों तक वंचित रहा |

मैं खिड़की से प्रकृति के इन व्यंजनों का रसस्वादन करने में व्यस्त था की मिश्रा जी की आवाज़ ने मुझे ये अनुभुति कराई कि मैं बस में बैठा हु | मिश्राजी ने जेब से नया स्मार्ट फ़ोन निकाला और मुझे दिखाने लगे | “ये देखिये जी, नया स्मार्ट फ़ोन १३ मेगा-पिक्सेल कैमरे के साथ…पुराना ८ मेगापिक्सेल था अब १३ ले लिया ” | वैसे तो आजकल किसी के पास बढ़िया क्वालिटी का स्मार्ट फ़ोन होना कोई अचरज की बात नहीं हैं पर फिर भी मैं मिश्राजी का मन रखने के लिए उनका फ़ोन देखकर बधाई देने लगा | “ये देखिये व्हाटसैप फेसबुक सब चलता हैं इसमें” | वो मुझे फ़ोन की कार्य प्रणाली के बारे में बताने लगे | मैंने ध्यान से उन्हें सुना और फिर से प्रकृति की और रुख करने के लिए मिश्राजी से कहा – देखिये ना कितनी सर्दी हैं…फोग भी कितना हैं बाहर” | मैं इतना बोलकर फिर से बाहर का नज़ारा देखने ही लगा था कि मिश्राजी तपाक से बोले – “अरे इस पर भी एक बढ़िया जोक आया था व्हाटसेप पर – पत्रकारों ने मोदी जी से पूछा कि काले धन लाने की बात पर क्या चल रहा हैं ? तो मोदीजी बोले – आजकल तो बस फोग चल रहा हैं|” ये जोक ना जाने कितने रूपों में अलग ग्रुप से कई बार मेरे फ़ोन पर आ चुका था पर फिर भी मिश्राजी का मन रखने के लिए मैं मुस्कुरा दिया | इतने अच्छे और असली फोग वाले मौसम को देखने की बजाय फोग पर ऐसे उल-जलूल जोक सुनना मुझे कतई अच्छा विचार नहीं लगा | और मैं फिर से बाहर देखने लगा | पर मिश्राजी इतने में नहीं मानने वाले थे – “ये देखिये इस बन्दर का कितना अच्छा विडियो शेयर किया हैं व्हात्सप्प पर” इतना बोलकर वो मुझे बन्दर का विडियो दिखाने लगे जिसमे बन्दर पेड़ पर कूदा-फांदी कर रहा था | संयोग की बात हैं कि बस किसी गाँव से निकल रही थी और खिड़की से हमें भी कुछ बन्दर दिखाई दिए | मैंने मिश्राजी का ध्यान बाहर के बंदरो की तरफ करने की कोशिश की तो कहने लगे कि ये बन्दर वाला विडियो भारत का नहीं बल्कि अमेरिका का हैं | अब मुझे पता नहीं कि अमेरिका में भी बन्दर पाये जाते हैं कि नहीं, पर मिश्राजी को बन्दर के उस रिकार्डेड विडियो के स्थान पर लाइव प्रसारण देखना कतई मंजूर नहीं था | वो तो विडियो देखकर ऐसे ठहाके लगा रहे थे कि जैसे बंदरो की ऐसी हरकत पहली बार देखी हो | “ये देखिये मेरा एक दोस्त हैं – जहाँ जाता हैं वहाँ की मस्त फोटो फसबुक पर डालता हैं..अभी पिछले हफ्ते ही देहरादून होकर आया, वहाँ के प्राकृतिक द्रश्य के कितने अच्छे फोटो डाले हैं फेसबुक पर…देखिये जरा|” निस्संदेह देहरादून एक बहुत खुबसूरत शहर हैं और फोटो भी बहुत अच्छे थे, पर प्रकृति को 5 इंच में देखने की तुलना में आँखों की पलकों से क्षितिज तक देखना कही अधिक मनोहारी लगता हैं | और तो और, आज तो अपने क्षेत्र में ऐसा मौसम हैं कि वो किसी हिल स्टेशन से कम नहीं लग रहा हैं | पर मिश्राजी को ये कतई मंजूर नहीं था, वो तो मुझे अपने दोस्त की फेसबुक प्रोफाइल पर शेयर किये हुए पुरे 46 फोटो दिखाकर ही माने |

मिश्राजी मेरे संकोच का पूरा फायदा उठा रहे थे | एक-एक करके व्हात्सप्प-फेसबुक पर आये हुए चुटकुले, सन्देश, फोटो और विडियो मुझे दिखाने लगे | खुद ही दिखाते और खुद ही सबसे ज्यादा खुश होते | मुझे भी उनका साथ देने के लिए फालतू में ही मुस्कुराना पड़ रहा था | पुरे 2 घंटे के रस्ते में फ़ोन से नज़रे उठाकर एक बार भी इतने अच्छे मौसम को निहारना उन्हें अच्छा नहीं लगा | इतना अच्छा फोग, बन्दर और प्राकृतिक द्रश्य – सब कुछ तो बस की खिड़की से नज़र आ रहा था पर मिश्राजी को तो फोग वाले चुटकुले, बन्दर वाले विडियो और प्राकृतिक दृश्य वाली इमेजेस दिखाने की धुन लग गयी थी | खैर पुरे 24 चुटकुले, 61 चित्र, 18 सन्देश और 5 विडियो दिखाने के बाद जब हम अपने गंतव्य पर पहुचे तो दिल मिश्राजी से बस एक ही बात बोलना चाह रहा था – “मिश्राजी व्हात्सप्प-फेसबुक हमारे फ़ोन में भी चलता हैं और दोस्त हमारे भी हैं…इसलिए अब आगे से किसी को अपना फोन दिखाकर ऐसा बोर मत किया करो” |

One response to “लघु कथा – आजकल तो बस फौग चल रहा हैं !”

  1. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति। स्मार्टफोन किस प्रकार इंसान को प्रकृति और इंसानियत से दूर कर रहा है!

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