राम बनना आसान हैं, मुश्किल हैं सीता होना !
राम की राह आसान थी पर सीता के ह्रदय की थाह पाना मुश्किल !
क्या गुजरी थी सीता पर जब वनवास का सुना था ! सुना हैं तनिक भी विचार नही किया सीता ने और राम से पहले वनवास की वस्त्र धारण करके खड़ी हो गयी थी ! जहाँ मेरे राम वहां मैं !
अशोक वाटिका में क्या मनोव्यथा थी सीता तुम्हारी। एक तरफ रावण की शक्ति व अहंकार और दूसरी और तुम्हारा राम के प्रति अनुराग और विश्वास । असल युद्ध तो तुमने ही किया था रावण से और वो भी बिना शस्त्र और सेना के !
तुमने हर क्षण विश्वास रखा राम पर , प्रेम और त्याग की हर कसौटी पर खरी उतरी तुम । पर ये क्या जिससे प्रेम किया उस ने भी परीक्षा ली और वो भी अग्निपरीक्षा ! रावण की लंका में जो हुआ उससे भी बड़ा अत्यचार हुआ तुम पर, और वो भी राम-राज में !
तुम हर कसौटी पर खरी उतरी पर फिर भी तुम महान नही थी सीता । अग्नीपरिक्षा देने का तुम्हारा निर्णय तो सदैव गलत ही था। रावण अगर तुम्हें छू लेता तो भी, क्योंकि वो तो केवल शारीरिक अपवित्रता होती, हृदय और आत्मा से तो तुम राम की ही थी ! सात नही हर जन्म के लिए !
तुम महान तब होती हो सीता जब राम लव-कुश का सच जानकर तुम्हे लेने आते हैं और तुम राम का निवेदन अस्वीकार कर देती हो ! तब आत्म सम्मान प्रेम से हमेशा के लिए बडा हो गया ! जिस राम को तुमने हृदय में स्थान दिया, जिसके हर निर्णय में तुमने बराबरी से साथ दिया उसी राम ने तुम्हारे चरित्र पर उठ रहे सवालो से बचने के लिए तुम्हे त्याग दिया । तुमने बिल्कुल सही किया सीता, राम इसी लायक थे ! उस दिन तुम्हारा कद राम से कही ऊंचा हो गया ! सारे प्रेमियो के लिए उस दिन तुम सबक बन गयी, महिलाओ के लिये उदाहरण और पुरुषों के लिए ग्लानि ! वर्ल्ड फर्स्ट फेमिनिज्म थिंकिंग तो तुम्ही ने दिखाई सीता !
सच मे प्रेम तो केवल तुम ही कर रही थी सीता । राम तो राज-धर्म निभा रहे थे, पर क्या सच मे राम ? तुम्हारा राजधर्म उस दिन कहाँ गया था जब प्रजा की आकांक्षाओ को दरकिनार कर तुमने वनवास का निर्णय लिया । क्या तब तुम्हे प्रजा के मान के लिए और राज्य के बेहतर भविष्य के लिए विद्रोह करके सत्ता हासिल नही करनी चाहिए थी । अपने युवराज-धर्म का बड़ा अच्छा पालन किया तुमने ! पर तुम तो उस समय पुत्र-धर्म का निर्वाह कर रहे थे ! फिर सीता त्याग के समय राज धर्म क्यो निभाया, पति-धर्म क्यो नही? धर्म मर्यादा तो तुमने सारी निभाई राम पर फिर मानव-धर्म का क्या राम ? अपनी गर्भावती भार्या का त्याग करने के बजाय अपनी अविवेकी प्रजा को समझाना क्या राज-धर्म या मानव-धर्म नही था? क्या अग्निपरीक्षा लेते समय उसी अग्नि को साक्षी मानकर लिए हुए विवाह के वचनों को तुम भूल गए राम । क्या ये विडंबना नही हैं कि विवाह के वचनों को भूलने वाले राम को संसार मर्यादा पुरुषोत्तम कहता हैं, प्राण जाए पर वचन ना जाये !
गलती सीता की ही थी कि उन्होंने स्वयंवर में धनुष उठाने वाले को वरण किया, क्या पता था कि धनुष उठाने वाले के कांधे प्रेम नही उठा पाते ! एक पतिव्रता नारी के तप और एक जड़मति के विवेकहीन तर्क में भेद नही कर पाते ! हनुमान के सीने में तो तुमने अपनी छवि देख ली फिर सीता का हृदय क्यों नही पढ़ पाए राम । अच्छा किया सीता तुम धरती में समा गई । तुम जैसी निश्छल प्रेमिका के लिए ये संसार बना ही नही हैं । ध्रुव को पिता की गोद ना मिली तो वो आसमान में चले गए और तुम्हे अपने पति के संसार मे स्थान ना मिली तो धरती में समा गयीं । क्या पता पाताल में कही ध्रुव तारा बनकर तुम भी जगमगा रही हो ।
क्षमा करना राम पर जब भी तुम्हारे सामने शीश झुकाता हु, माता सीता के लिए अपनी आंखों को शर्म से भी झुकाता हूँ ।
अंत मे – सुना है मिथिला में अब कोई भी अपनी बेटी को अवध में नही ब्याहता । अच्छा ही करते हैं मिथिला वाले । बेटे के वियोग में प्राण त्यागने वाले दशरथ का दर्द बेटी की अग्निपरीक्षा देखते राजा जनक के दर्द के सामने कुछ भी तो नही था !
2 responses to “सीता”
Superb Ankit bhai
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Bahut hi marmik n hadaysparshi.aapke biochar n soch ki gahraiyo ko naman .sita chartra ki sunder n samanniya vyakhya. Shubhkamnae…aapki kalam esi hi chalti rahe
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