तेज़ाब


वो गली के सबसे कोने वाले घर मे रहने वाले मोहन दादा उस दिन बहुत खुश थे क्योंकि दूरदर्शन पर उस दिन तेज़ाब फ़िल्म आने वाली थी । मोहन दादा अपनी प्रौढ़ अवस्था मे थे और घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपना बुढापा एन्जॉय कर रहे थे । गली में रहने वाले मोनू को वो बार-बार तेज़ाब के गाने गाकर सुना रहे थे – “एक,दो,तीन,चार,पाँच, छह……आजा पिया आई बहार” । मोनू को उन्होंने बताया जीवन मे तीन बार इस फ़िल्म को देखने का अवसर आया पर हर बार नही देख पाये । पहली बार जब थियेटर में लगी थी तब देखने गया उस दिन हॉउसफुल हो गया । फिर दो बार टीवी पर आई, पर दोनों बार रात में नींद आ गई और पिक्चर नही देख पाया । आज उन्होंने दिन में अच्छे से नींद निकाल ली और अब रात को इत्मिनान से फ़िल्म देखने का प्लान बनाया हैं ।

मोहन दादा की बातों ने मोनू की उत्सकता भी फ़िल्म में जगा दी । वैसे भी 12-१३ साल की उम्र में बच्चे फ़िल्म और खेल के प्रति ज़्यादा ही आकर्षित होते हैं । रात 9:30 बजे फ़िल्म शुरू हुई और मोनू को फ़िल्म शुरुआत से ही काफी अच्छी लगी । पर मध्यांतर में फ़िल्म में एक गीत आया – सो गया ये जहाँ, सो गया आसमा…. रात बहुत हो चुकी थी और नितिन मुकेश की मीठी आवाज़ मोनू को लोरी जैसी लगी और वो सो गया । रात भर गहरी नींद में सोया रहा पर सुबह जब उठा तो गली में अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था । बाहर गली में मोहन दादा के घर पर कुछ लोग खड़े थे । मोनू जब उनके घर तक गया तो देखा मोहन दादा अब इस दुनिया मे नही रहे और उनके घर वाले चीख-चीखकर रो रहे थे – रात में तो अच्छे खासे तेज़ाब पिक्चर देखकर सोये थे और सुबह क्या हो गया ।

बात को दो साल बीत चुके थे और दूरदर्शन पर फिर एक दिन तेज़ाब फ़िल्म आने वाली थी । मोहन दादा को मोनू बिल्कुल भूल चुका था । मोनू ने रात में उस दिन फिर तेज़ाब देखना शुरू की । टीवी पर जैसे ही गीत आया – एक,दो,तीन,चार,पाँच, छह……आजा पिया आई बहार…मोनू को मोहन दादा याद आ गए । ये गीत वो मोहिनी से पहले मोहन दादा से सुन चुका था । मोहन दादा की याद आते ही मोनू के मन मे डर बैठ गया । फ़िल्म के बीच मे जब भी वो बाथरूम या पानी पीने जाता वो मोहन दादा को याद करके सहम रहा था । एक बार उसने खिड़की के पर्दे हटाकर गली में देखा तो उसे गली में वही सन्नाटा पसरा हुआ सा लगा । धीरे-धीरे फ़िल्म आगे बढ़ी और फ़िल्म में गीत आया – सो गया ये जहाँ, सो गया आसमा…मोनू को फिर से ये गीत सुनकर नींद आ गयी और वो गहरी नींद में सो गया । उस रात मोनू को सपने में मोहन दादा दिखाई दिये , उनके घर के सामने वाली गली में, अंधेरे से भरे वातावरण में, वो अकेले वही मोहिनी वाला गाना गाते हुए चले जा रहे थे – बताइये कैसे हैं आप….मैं कर रहा था आपका इंतज़ार….एक दो तीन चार पांच छः…. बारह तेरह…तेरह करू गिन गिन… आजा पिया आई बाहर । फिर मोहन दादा ने दूसरा गाना गाया …सो गया ये जहाँ, सो गया आसमा…. सो गए ये सारे गली वाले …सो गए ये रस्ते । गाने के बीच-बीच में मोहन दादा गली में रहने वाले लोगों के नाम भी लेने लगे …सो गए ये शर्माजी… सो गए श्रीवास्तव जी ! गाने के अंत मे उन्होंने ये पंक्तियां गाई — सो गए सारे गली वाले …पर कोई तो देख रहा होगा तेज़ाब ….! सबसे अंत मे मोहन दादा ने डरावनी हंसी हँसते हुए कहा – हा… हा… हा… मोनू बेटा अब मुझे अकेले तेज़ाब नही देखनी पड़ेगी…हा.. हा… हा ।

मोनू मोहन दादा का ये डरावना रूप देखकर नींद में बहुत डर रहा था और उसकी नींद सुबह जल्दी भी खुल गई । सुबह जब उसने बाहर जाकर देखा तो गली में वही सन्नाटा पसरा हुआ था और वो चलकर जब मोहन दादा के घर पहुँचा तो देखा मोहन दादा की पत्नी अब इस दुनिया मे नही रही और घरवाले चीख चीखकर रो रहे थे – कल तो तेज़ाब देखकर अच्छी खासी सोई थी और ये सुबह क्या हो गया !

9 responses to “तेज़ाब”

  1. I am a regular reader of your blog. I like your poems and stories very much. This time you really surprised me with scary story. End of the story is scary and LOL both. Nice read. Keep wrirting

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  2. Connection of all incidents with Tezab movie is so good. End was predictable to me but it was entertaining to read.
    Keep writing and entertain us like this sir

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  3. It’s scary but for those who understands it, I think story should be little bit longer with more horror masala 😜
    For intellectual kind of people ‘A Perfect Story’
    👏👏👏

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