इंतेज़ार, ऐतबार, तुमसे प्यार कितना करू…


साल 2006 में एक फ़िल्म आई थीं – खोसला का घोंसला । भू-माफिया के चंगुल में फसे दिल्ली के एक मध्यम वर्गीय परिवार पर आधारित ये फ़िल्म बहुत दिलचस्प थी । इस फ़िल्म में कैलाश खैर की आवाज़ में चक दे फट्टे जैसा रोचक गीत भी था । इस फ़िल्म को देखने के बाद लगा कि फ़िल्म में एक गीत को अधूरा छोड़ा गया हैं, इस गीत की पंक्तियों को कुछ दृश्यों में उपयोग किया गया हैं, पर पूरा गीत कभी नही सुनाई दिया ।

तो माजरा ये हैं कि नायक विदेश जाने के लिए प्रयासरत हैं पर उसके परिवार पर भू-माफिया द्वारा एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी गई हैं । नायक को विदेश तो जाना हैं पर परिवार को इस हालत में नही छोड़ना हैं । नायिका को इस बात का दुख हैं कि नायक विदेश जा रहा हैं और भावनात्मक उथलपुथल के दौर से गुजर रहा नायक, नायिका के साथ रिश्ते के भविष्य को लेकर कोई ठोस जवाब नही दे पा रहा हैं । और अगर नायक विदेश चला गया तो शायद ये इस रिश्ते का अंत ही हो । नायिका के मन की इसी उधेड़बुन पर इस गीत का ताना बाना रचा गया हैं ।

डर ये लगता हैं क्या ये सपना हैं…
अब जो अपना हैं, कल वो कहाँ हैं…
डरता दिल पूछे बार बार…
इंतेज़ार, ऐतबार, तुमसे प्यार कितना करू…

इस गीत की खूबसूरती ये हैं कि ना ये प्रेम गीत हैं ना विरह गीत, ना खुशी का अहसास देता हैं और ना दर्द का । ये तो मानवीय मन के अंतर्द्वंद्व का गीत हैं । नायिका को नायक के प्रेम पर विश्वास तो हैं पर हालिया घटनाक्रम से वो भविष्य के प्रति संशकित हैं । उसके सवाल नायक से नही, खुद से हैं – इंतेज़ार, एतबार, तुमसे प्यार, कितना करू । ये निर्णय लेने वाली घड़ी का गीत हैं वो भी तब जब दिल और दिमाग का युद्ध जारी है । देखा जाए तो ये जो अंतर्द्वंद्व होता हैं ना, यही जीवित होने का अहसास हैं । पूरा जीवन ही जैसे एक क्वेश्चन-पेपर हैं और ये दुनिया एक बडा सा एग्जाम- हाल । हर किसी को ऊपरवाले ने एक निर्धारित समय दिया हैं इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने के लिए । और इन जवाबो को तलाशने के लिए मानव हृदय खुशी और दर्द के बीच झूलते हुए जिस जीवन को जीता हैं उसी का नाम हैं अंतर्द्वंद ।

अंतर्द्वंद के इस गीत को समंदर की लहरों जैसे भावों में बहते हुए गाया हैं सौम्या राव ने, जिनकी आवाज़ चित्रा की याद दिलाती हैं । गीत का संगीत रचा था विवेक ढला ने और भाव प्रणय लिरिक्स लिखे थे जयदीप सैनी ने । गीत के बीच मे थोड़ी कव्वाली भी हैं जो माधुर्य को कम करती हैं । इतने मधुर गीत की ये पंक्ति फ़िल्म में उपयोग हुई हैं जो हूक की तरह दिल मे लगती हैं – “छोटी रातें हैं, कितनी बातें हैं….अब जो आये हो ….थामो हमे एक बार”….बाते अभी और भी है पर हमारे पास भी शब्दो की सीमा हैं, और अगर आप इसी तरह थामे रहे तो अगली बार फिर मिलते हैं किसी और गीत के साथ…

गीत की यू ट्यूब लिंक – https://m.youtube.com/watch?v=5AGibp-xpb0

आपका अपना
अंकित सिंह सोलंकी, उज्जैन (मप्र)

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