घटाओ के साज पर बादलो के गीत,
बूंदों में बरसता कुदरत का संगीत
पत्तो की कोमलता पर बूंदों की छुअन,
रूमानियत के रोमांच में भीगता हर मन
हवाओ के आगोश में मिटटी की खुशबु,
दिल को करती मदहोश, बना देती बेकाबू
बूंद-बूंद में धडकती बादलो की साँस,
हर बूंद से बंधी इन्सान की आस
आसमा से बरसता बरकत का नीर,
दिखते हे इसमें राम, मिलते हे पीर
बिजलियों में कड़कती बादलो की रंजिश,
सूरज को छिपाने की असफल कोशिश
आसमान पर लहराती काले बादलो की झालर,
बेरंग धरती को औडाती हरियाली चादर
सूखे वृक्षों को देती जीवन, पंछियों को दाना
नदी तालो में भर देती पानी का खजाना
–अंकित सोलंकी, उज्जैन (मप्र)
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