शिव – गृहस्थ, पति और प्रेमी


नोट – ये लेख समर्पित हैं उन सभी स्त्रियों को जो अपने जीवनसाथी में किसी फ़िल्मी हीरो जैसी खूबी तलाशती हैं | ये लेख उन सज्जनो को भी समर्पित हैं को स्त्री को अपना दास समझते है या स्वयं उनके दास बन जाते हैं |


प्रेमी हो तो श्री कृष्ण जैसा !
पति हो तो भोलेनाथ जैसा !

प्रेमी हो तो श्री कृष्ण जैसा जो प्रेमिका को सदैव के लिए ह्रदय में स्थान दे !
पति हो तो भोलेनाथ जैसा जो पत्नी को ह्रदय ही नहीं अपितु तन-मन और जीवन में इस तरह सम्मिलित कर ले कि स्वयं अर्द्ध नारीश्वर बन जाये !

इसका यह अर्थ कदापि नहीं हैं कि प्रेम किसी और से किया जाये और जीवन साथी किसी और को बनाया जाये | बहुधा प्रेम किया नहीं जाता परन्तु जीवनसाथी का निर्णय हमेशा बहुत सोच-समझकर किया जाता हैं | पुराणों कथाओ में शिव को ऐसे ईश्वर के रूप में दिखाया जाता हैं जो सन्यासी के समान जीवन व्यतीत करते हैं, समाधी में रहते हैं, समस्त ऊर्जा का स्त्रोत हैं और संसार को विनाश से बचाते हैं | परन्तु शिव एक आदर्श पति का उत्तम उदाहरण भी हैं | उन्होने पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया तो उसके बाद उनका ध्यान किसी और स्त्री पर नहीं गया | एक आदर्श गृहस्थ की तरह वो अपने कर्म जैसे ध्यान-समाधी में ही लीन रहते हैं और बचा हुआ पूरा समय अपने परिवार और घर (कैलाश पर्वत) की देखभाल करते हैं | शिव कभी अपना समय इधर-उधर भ्रमण करने या अन्य व्यर्थ प्रपंच-मौज-मस्ती करने में व्यतीत नहीं करते | यही गृहस्थ की सर्वकालिक आदर्श परिभाषा हैं कि वो अपना पूरा समय अपने कर्म और परिवार को ही दे |

शिव का रहन-सहन सामान्य हैं, वो सामान्य वस्त्र पहनते हैं, साधारण सा जीवन व्यतीत करते हैं परन्तु अपने बच्चो को ऐसे आदर्श देते हैं कि उनके पुत्र गणेश माता-पिता को सारे संसार से बड़ा समझते हैं | एक गृहस्थ को भी सादे जीवन को अंगीकार करना चाहिए और अपनी पूरी पूंजी अपने परिवार के उच्च पालन-पौषण पर लगानी चाहिए | यहाँ पूंजी केवल रुपये पैसो की ही नहीं वरन आदर्श-संस्कार की भी है | यह एक विचित्र संयोग हैं कि शिव संन्यासी के वेश में विशुद्ध गृहस्थ हैं और कृष्ण एक गृहस्थ के वेश में साधु | एक आदर्श गृहस्थ वही है जिसका रहन-सहन साधारण हो पर कर्म और विचार उच्च |

शिव गृहस्थ के रूप में खरा सोना हैं तो पति के रूप में बहुमूल्य हीरा | उन्होंने पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया तो उसे अपने साथ बराबरी से बैठाया, अर्द्ध रूप नारी का जरूर लिया पर अर्द्ध रूप अपना भी अक्षुण्ण बनाये रखा | अर्द्धांगिनी का अर्थ तो शिव ने ही समझाया | यही विडंबना हैं आज पुरुष समाज के साथ कि वो या तो स्त्री को अपने चरणों में स्थान देते है या स्वयं स्त्री के चरणों में बैठकर दास बन जाते हैं | स्त्री ना भोग की वस्तु हैं और ना ही मंदिर की मूर्ति , उसे मनुष्य समझने की जरुरत हैं और बराबरी का स्थान देने की जरुरत हैं – ना इससे ज्यादा ना इससे कम |

शिव का प्रेमी स्वरुप शायद की किसी अवसर पर प्रकट हुआ हो | शिव ने अपना प्रेम सदैव एक गृहस्थ के समान अपने घर की दीवारों के अंदर ही दिखाया | एक अवसर पर ऐसा अवश्य हैं जब शिव प्रेम की उस पराकाष्टा को पार कर गए जहा तक शायद ही कोई प्रेमी पहुँचा होगा | माता सती के लिए शिव का रूदन जितना डराता है उतना ही व्यथित भी कर देता हैं | अपनी भार्या की मृत काया को लेकर संसार में भटकने वाले शिव के दुःख की कोई थाह नहीं | शिव का रूदन दर्शाता हैं कि वो किस कदर अपनी पत्नी को प्रेम करते हैं | संसार का सर्वशक्तिमान ईश्वर भी प्रेम में इतना विवश हैं | प्रेम में दुनिया से पत्थर खाने वाले मजनू इस कथा के सामने बौना हैं , जहर खाने वाले रोमियो तुच्छ हैं |

और अंत में चलते-चलते :: स्त्री का प्रेम इस संसार की सबसे अमूल्य वस्तु हैं, इसलिए हैं स्त्री समाज अपना प्रेम कभी किसी इडियट पर वेस्ट मत करना | यह अकारण नहीं कि सनातन धर्म में हरितालिका का व्रत बनाया तो शिव को पति के प्रतीतात्मक रूप में रखा गया, कृष्ण या राम को भी नहीं | एक पुरुष को कभी उसके बाहरी आडम्बर – वेशभूषा से मत परखना | एक पुरुष की पहचान उसके कर्म और विचारो से होती हैं | अपना प्रेम उसी को समर्पित करना जो तुम्हे बराबरी का स्थान दे, जिसका प्रेम तुम्हारे लिए कभी कम ना हो, जिसका हर कर्म समाज या परिवार के कल्याण के लिए हो, जो कर्म के पश्चात अपना पूरा समय तुम्हे और परिवार को दे, जो न तुम्हे अपना दास समझे और ना ही तुम्हे अपने सर पर बैठाये बल्कि दोस्त मानकर अपने साथ बैठाये, तुम्हारे मन की बात सुने और तुम्हारे विरह में जिसका रूदन समस्त संसार को व्यथित कर दे – वही तुम्हारे प्रेम का अधिकारी हैं |

2 responses to “शिव – गृहस्थ, पति और प्रेमी”

  1. स्त्री ना भोग की वस्तु हैं और ना ही मंदिर की मूर्ति , उसे मनुष्य समझने की जरुरत हैं और बराबरी का स्थान देने की जरुरत हैं – ना इससे ज्यादा ना इससे कम |
    Bahut gehri line he Thakur…

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