खेल तो वही हैं पर हाथो में अब कंचे नही हैं
इम्तहान तो रोज देते हैं पर अब हाथो में पर्चे नही हैं
दुनिया तो पहले भी झूठी थी, पर अब हम भी उतने सच्चे नही है
ये सच हैं यारो अब हम बच्चे नही हैं !
खिलौने अब उतने अच्छे लगते नही हैं
दोस्त अब आसानी से बनते नही हैं
लोग तो पहले भी कमीने ही थे, पर अब हम भी उतने अच्छे नही हैं
ये सच हैं यारो अब हम बच्चे नही हैं !
डिग्री तो ले ली पर ज्ञान स्कूल के बस्ते में ही है
पैसा तो कमा लिया पर खुशी बचपन के रस्ते में ही है
दर्द तो पहले भी होता था, पर अब कुछ भी जल्दी से भूलते नही है
ये सच हैं यारो अब हम बच्चे नही हैं !
पेंट तो पहन ली पर अंदर से कच्छे में ही हैं
कद तो बढ़ गया पर दिल छुटपन के साँचे में ही हैं
मन हैं फिर से बचपन जीने का, पर वक़्त के पहरे इतने कच्चे नही हैं
ये सच हैं यारो अब हम बच्चे नही हैं !
— अंकित सोलंकी, उज्जैन (मप्र)
One response to “बचपन”
Bemisaal
LikeLike