
इंसानियत दो हिस्सों में बंट गई
जमीन पर जब सरहद बन गई
करतूत देखो कमीने इंसान की
मुल्क बनाये, मिट्टी बंट गईं
फिर बैठी बिसात सियासत की
फौज बनी, बंदूके तन गई
हुक्मरानों को तो हुकूमतें चलाना था
फरमान निकाला जंग छिड़ गई
कौन सही कौन गलत
सारी दुनिया इसी में लग गई
कौन देखे उन मासूमों को
जिनकी ज़िन्दगी जहन्नुम बन गई
कितनी माँ बेऔलाद हो गई
कितनी बेगमे बेवा बन गई
सारा झगड़ा सिर्फ सरहद का था
एक लकीर से इंसानियत मिट गई
ठाकुर ने इतिहास रो-रोकर ही पढ़ा
हर पन्ने पर जो एक जंग दिख गई
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