वो लड़की ऐशोआराम में पली बढ़ी थी
पैसे लत्ते नौकर चाकर की कमी नही थी
वो लड़का गरीब घर मे पैदा हुआ था
मेहनत स्वाभिमान से भरा हुआ था
कहने को दोनों का स्टेटस मेच नही था
फिर भी दोनों में प्यार होने लगा था
प्यार हुआ तो शादी भी होनी ही थी
पर लड़की के परिवार की मंजूरी नही थी
लड़की के परिवार वालो ने जैसे तैसे हाँ कर दी
पर लड़के के स्वाभिमान को चोट भी पहुँचा दी
अब लड़का चाहता था लड़की को मायके जैसा ही सुख देना
पर इसके लिए उसे था थोड़ा अमीर बनना
उसने शादी एक साल बाद करने का मन बनाया
तब तक परदेस में जाकर पैसा कमाने का प्लान बनाया
लड़की को फिर मिलने का वादा कर गया
पैसा कमाने जहाज में बैठकर परदेस चला गया
उस जमाने मे मोबाइल फोन तो होते नही थे
दोनो एक दूसरे को सिर्फ चिठ्ठीयां लिखा करते थे
देखते देखते पूरा साल निकल गया
लड़का भी पैसा जोड़कर घर को निकल गया
लड़की की खुशी का उस दिन ठिकाना नही था
जब चिठ्ठी आई वो एक महीने में वापस आ रहा था
दो महीने बीत गए पर लड़का वापस नही आया
लडकी का मन अब बहुत घबरा गया
फिर खबर आई वो जहाज समंदर में डूब गया
कोई भी यात्री उस जहाज से लौट नही पाया
लड़की का रो-रोकर बुरा हाल हो गया
घरवालो ने समझाया तू जी, जाने वाला तो चला गया
लड़की फिर भी उसके लौटने का इंतज़ार करने लगी
खाना पीना भूलकर पागलो जैसी रहने लगी
हर घड़ी बस वो अब उसका रास्ता देखती थी
हर पल भगवान से उसके लिए पूजा प्रार्थना करती थी
सब ने समझा लिया पर वो किसी का ना सुनती थी
हर समय वो मंदिर और साधु संतों के साथ दिखती थी
कुछ इस हाल में दो साल बीत गए
परिवार वाले भी उसे समझा समझा के थक गए
इन दो सालों में लड़की पूरी बदल गई थी
पूजन पाठ चिन्तन आध्यात्म में रम गई थी
जब उसने लड़के के वापस आने की कोई उम्मीद ना जानी
तब उसने मन मे वैराग्य लेने की ठानी
लड़की के परिवार वालो ने उसे भारी मन से मंजूरी दे दी
सन्यास लेने की सारी तैयारी पूरी कर दी
उस दिन घर में विवाह जैसा उत्सव मनाया गया
भोज में सारे नगर को बुलाया गया
सन्यासी वेश में लड़की घर से विदा हो गई
अपनी प्रिय वस्तुओं को सडक पर फेंक गई
इत्र-कंगन-पाज़ेब और रंग बिरंगी पौशाखे
पीछे छोड़ चली वो मोह माया के रास्ते
अंत मे उसने चिठ्ठीयो का एक बंडल उठाया
होंठो से चूमकर सीने से लगाया
सन्यास के रास्ते की आखिरी सीढ़ी भी पार कर ली
वो प्यारी चिठ्ठीया भी सड़क पर फेक दी
तभी कार से उतरकर एक आदमी आया
बैसाखियों के सहारे चलता वो लड़की के पास आया
सारे नगर ने उस आदमी को पहचान लिया था
पर उस लड़की के लिए अब वो चेहरा अनजाना था
आस भरी नज़रो से उस आदमी ने लड़की को देखा
तुम्हारा कल्याण हो कहकर लडक़ी ने फिर उस आदमी को ना देखा
एक सच्ची प्रेमिका उस दिन दिव्य तपस्वी बन गई
प्रेमकहानी उनकी सदियो के लिए यशस्वी बन गई
मायूस आदमी उन चिठ्ठीयो को उठाकर ले आया
मन्दिर में रखकर भगवान की तरह पूजने लगा
पैसा मिलता है मेहनत से और प्यार किस्मत से
ना तोलना यारो प्यार को किसी दौलत से
जो भी पल मिले जी लेना मोहब्बत के
ना जाने कब कोई प्यार हार जाए किस्मत से !
- अंकित सोलंकी, उज्जैन (मप्र)