म्हारे कने है पइसा कोणी
ने वीने चईये घाघरो नयो !
ऊका भई को ब्याव हैं
ने बाजो म्हारे घर बाजी रियो !
लय दो म्हारे सावरियाँ
एक घाघरो नयो !
पहन के ऊके इतराऊंगी मैं
कि बालम म्हारो केसरियो !
बालम तो हूँ मैं केसरियो
पर जेब ती हूँ अभी फ़ोकटियो !
सोयाबीन तो वगडी गई
ने लसन-कांदा में भी घाटो गयो !
खेती में हैं यो साल ख़राब
जेबा खाली ने कर्जों घणो !
घाघरो तो नी देवाड़ी सके
बालम थारो केसरियो !
बालम म्हारा केसरिया
ज्यादा थम अब बोली रिया !
म्हारा भई को ब्याव वई जावा दो
कंजूसी फिर थम करता रिया !
मांगू कोणी सोना चांदी
मांगू मैं बस घाघरो नयो !
ऐसा चिमठा कायका थम
बालम म्हारा केसरिया !
रानी म्हारी केसरिया
म्हारे तू बेचया !
लई लीजे फिर सोना चांदी
चोली घाघरो लहरिया !
पइसो णी हैं तो कई करू
डाको डालु कि करू चोरिया !
जेल की चक्की पिसोगो फिर
बालम म्हारो केसरिया !
— अंकित सोलंकी, उज्जैन (मप्र)