नेवर ओल्ड नाइनटीस – ट्रिब्यूट टू 90स बॉलीवुड सांग्स


तब संगीत कानो में ठूसा नहीं जाता था, वो तो हवाओ में बहता था | कही कुल्फी के ठेले पर कुमार सानू गाते रहते थे – “दिल की तन्हाई को आवाज़ बना लेते हैं, दर्द जब हद से गुजरता हैं तो गा लेते हैं…”, तो कही पान की दुकान से अनुराधा पौडवाल जी गुनगुनाती थी – “मुश्किल बड़ी हैं रस्म-इ-मोहब्बत, ये जानता ही नहीं, दिल हैं कि मानता नहीं…”| किसी बस में उदित नारायण जी बजते रहते थे – “परदेसी मेरे यारा मुझे ना भुलाना, मुझे याद रखना कही भूल ना जाना, परदेसी-परदेसी जाना नहीं…”, तो किसी चौराहे से गुजरते हुए आवाज़े आती रहती थी – “औ लाल डुपट्टे वाली तेरा नाम तो बता…” | इंटरनेट, कंप्यूटर और हेडफोन जैसे साधन नहीं होते थे | नए गीत सुनने के लिए टीवी ही एकमात्र साधन हुआ करता था, पर वहाँ भी निश्चित समय पर ही फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम आता था | हम चौराहे पर या पान की दुकान पर कोई नया गीत सुनकर आते थे और दिन भर उसे गुनगुनाते रहते थे | गली-मोहल्ले में एक घर होता था जिनके पास एक बड़े सा काळा बक्सेनुमा स्पीकर हुआ करता था, वो दिन भर कैसेट बजाते रहते थे और पूरा मोहल्ला उन गीतों का आनंद लेता था | गली-मोहल्ला-चौराहे-बसअड्डे-पान की दुकानों पर, सभी स्थानों पर हमे मधुर गीत सुनाई देते थे और हवाओ में यही गीत बहते रहते थे |


तब लड़का किसी लड़की को देखकर “लड़की ब्यूटीफुल कर गई चूल” जैसी बेहूदा बात नहीं करता था | वो गाता था “एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे खिलता गुलाब,जैसे शायर का ख्वाब…”, ” चाँद, सितारे, फूल और खुशबू ये तो सारे पुराने है, ताज़ा-ताज़ा कली खिली हैं, हम उसके दीवाने हैं…” | लड़किया भी अपने जीवनसाथी के इंतज़ार में “मेरे ख्वाबो में जो आये…”, “मुझसे मोहब्बत का इज़हार करता…”, “औ मेरे सपनो के सौदागर…” जैसे गीत गाती थी | प्यार हो जाने पर लड़का स्वेटर को हवा में लहरा कर गोल घूमते हुए गाता था “पहला नशा,पहला खुमार, कर लू मैं क्या अपना हाल...”, तो लड़किया भी गुनगुनाती थी “क्यों नए लग रहे है ये धरती-गगन … प्यार हुआ चुपके से” | लड़का लड़की को रिझाने के लिए गाता – “मैं कोई ऐसा गीत गाऊ कि आरज़ू जगाउ, अगर तुम कहो…” , फिर लड़की बोलती – “इस दीवाने लड़के को कोई समझाए, प्यार-मोहब्बत ये ना जाने…” | लड़का लड़की से कोई रिस्पॉन्स ना मिलने पर कहता – “चुरा के दिल मेरा गोरिया चली…“, लड़की फिर जवाब देती – “ये लड़का हैं दीवाना… हैं दीवाना...” | अबकी बार लड़का सीरियसली बोलता – “तुझे देखा तो ये जाना सनम, प्यार होता हैं दीवाना सनम...”| अब लड़की लड़के के विश्वास को पक्का करने के लिए पूछती “सपना समझकर भूल ना जाना, औ दिलवाले साथ निभाना….साथ निभाना दिलदार ” | लड़का लड़की को वचन देते हुए गाता “वादा रहा सनम, होंगे जुदा ना हम,चाहे ना चाहे ये जमाना…” | फिर लड़का और लड़की मिलते और गीत बजता “बाहो के दरमियाँ दो प्यार मिल रहे…” |


दोनों की शादी होती और लड़का गाता “मेहँदी लगा के रखना, डोली सजा के रखना…” , लड़की गुनगुनाती “सबकी बाराते आई,डोली तुम भी लाना…” | लड़की की सहेलिया और रिश्तेदार गाते “मेहँदी हे लगने वाली, तेरे मन को, जीवन को नई खुशियाँ मिलने वाली… ” ! बारात में कुछ पियक्कड़ बाराती डांस करते – “पी ले, पी ले औ मेरे राजा,पी ले, पी ले औ मेरे जानी…” | शादी की नोकझोक में गीत होता “दूल्हे की सालियो औ हरे दुपट्टे वालियों…” |लड़का लड़की हनीमून पर जाते और गाते “ये हसीं वादिया, ये खुला आसमान, आ गए हम कहाँ….” और फिर दोनों हमेशा के लिए एक हो जाते और “धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना हैं…” गाते जाते और जीवन के “ताल से ताल…” मिलाते जाते |


उस दौर के गीत के बोल भी बड़े अजीब हुआ करते थे | “दो दिल मिल रहे हैं, मगर चुपके-चुपके…” आज के सोशल मीडिया वाले दौर में सोचना भी मुश्किल हैं कि कुछ चुपके-चुपके हो भी सकता हैं| “बड़ी मुश्किल हैं खोया मेरा दिल हे, कोई उसे ढूंढ के लाये ना…” आज ये उतनी बड़ी मुश्किल नहीं हैं, फेसबुक हैं, ट्विटर हैं, इंस्टाग्राम हैं, व्हाट्सप्प हैं, कही पर भी उस दिल को ढूंढ सकते हैं | “नज़र के सामने, जिगर के पास…” ये गीत तो उस दौर से बहुत आगे का गीत था, क्युकी तब किसी को भी नज़र के सामने हमेशा रखना मुमकिन ही नहीं था | पर अब मोबाइल, वीडियो कॉल और व्हाट्सप्प से ये ट्वेंटी-फोर क्रॉस सेवन मुमकिन हैं | “होश वालो को खबर क्या, बेहोशी क्या चीज़ हैं, इश्क़ कीजे…. ” अब इश्क़ करने की ज़रूरत नहीं हैं , एक मोबाइल खरीद लीजिये और समझिये बेहोशी क्या चीज़ हैं | एक गीत हैं “जादू तेरी नज़र, खुशबू तेरा बदन…” ऐसा लगता हैं उदारीकरण और ग्लोबलाइज़ेशन की शुरुआत में भारतीय समाज कॉस्मेटिक और बॉडी डिओडरंट को अपना रहा हैं और ये गीत गुनगुना रहा हैं | “कोई लड़की हैं, जब वो हंसती हैं, बारिश होती हैं….” ग्लोबल वार्मिंग इतनी बढ़ गई हैं कि बारिश के लिए इस लड़की की बहुत जरुरत हैं | “मेरा पिया घर आया औ रामजी…” अब ये स्टेटस केवल रामजी नहीं पूरी दुनिया को सोशल मीडिया पर डालकर बताया जाता हैं | और केवल पिया घर आया नहीं, पिया ने खाना खाया, पिया ने पानी पिया, पिया के साथ घूमने गया, सब चिल्ला-चिल्ला कर बताया जाता हैं | “सात समंदर पार मैं तेरे पीछे-पीछे आ गई…” ये उस समय का सबसे महंगा सौदा था , क्युकी अब सात समंदर पार जाने की जरुरत नहीं हैं, इंटरनेट इतना सुलभ हो गया हैं की सात समुन्दर पार आदमी पर भी आसानी से नज़र रखी जा सकती हैं | इन सब में एक गीत हैं जिसके मायने आज भी नहीं बदले हैं – “चिट्ठी न कोई संदेस, ना जाने कौन सा हे वो देस, जहाँ तुम चले गए…” सच उस देस में जाने के बाद किसी से कोई भी कनेक्शन मुमकिन नहीं हैं |


90स के गीतों की खास बात ये थी कि गीतों में ज्यादा कठिन हिंदी या उर्दू शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया | म्यूजिक में मेलोडी को हाईलाइट किया गया और बोल सिंपल पर खूबसूरत अभिव्यक्ति के साथ लिखे गए | जैसे ये दो गीत हैं जो अलका याग्निक का सिग्नेचर सांग बन गए – “तुम आये तो आया मुझे याद गली में आज चाँद निकला… “, “एक दिन आप हमको यु मिल जायेंगे, मैंने सोचा न था…” | ऐसे बोलो ने बता दिया कि सिंपल शब्दों में भी गहरी बात कही जा सकती हैं | मेलोडी म्यूजिक, इमोशनल कनेक्ट और सिंपल शब्दों के कारण ये गीत जल्दी से लोगो की ज़ुबान पर चढ़े और आज तक भी भूले नहीं गए | ऐसे कई गीत हैं जिन पर ये बात लागू होती हैं जैसे – “धीरे-धीरे से मेरी ज़िन्दगी में आना…”, “कब तक चुप बैठे, कुछ तो बोल ना…” , ” सोचेंगे तुम्हे प्यार करे कि नहीं…” , “आये हो मेरी ज़िन्दगी में तुम बहार बन के…”, “जब कोई बात बिगड़ जाये, तुम देना साथ मेरा…” | एक गीत हैं “दिल हैं कि मानता नहीं…“, अनुराधा पौडवाल की मधुर आवाज़ से सजा ये गीत अजीब सुकून से भर देता हैं | सोनू निगम की मखमली आवाज़ में एक गीत हैं – “मुझे रात-दिन बस मुझे चाहती हो….” रात के शांत-एकांत माहौल में अकेले अँधेरे कमरे में इस गीत को सुनना एक अलग ही दुनिया में ले जाता हैं | “कुछ कुछ होता हैं…” का टाइटल ट्रेक सुनने पर सच में कुछ कुछ होने लगता हैं | “तू मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए….” और “आँखों से तूने ये क्या कह दिया…” गीत हर दिल में रोमांस भर देते हैं | “मेरा दिल भी कितना पागल हैं, ये प्यार तो तुमसे करता हैं…” ये गीत इतने ठहराव और प्रेम के साथ गाया गया हैं कि ऐसा लगता हैं ये गीत कभी ख़त्म ही न हो | “ऐ मेरे हमसफ़र, ऐ मेरे जानेजा, मेरी मंज़िल हैं तू…” गीत की शुरआत में व्हिसल साउंड को सुनकर कभी भी आप नेक्स्ट सांग बटन प्रेस नहीं कर पाएंगे | “ये रंग सारे है बस तुम्हारे…और क्या…” गीत चाँद-तारो के बीच बैठकर प्यार भरी बाते करने जैसा अहसास देता हैं | “राह में उनसे मुलाकात हो गई….” गीत में आहाहाहा साउंड ठंडी हवा के जैसा लगता हैं | “मेरा मन क्यों तुम्हे चाहे….मेरा मन“, “ऐसी दीवानगी देखि नहीं कही….”, “ऐ काश की होश में हम होश में अब आने ना पाए….” , “देखो-देखो जानम हम दिल अपना तेरे लिए लाये” , “पहली-पहली बार मोहब्बत की हैं, कुछ न समझ मैं क्या करू“, “एक ऐसी लड़की थी जिसे मैं प्यार करता था…” , “मेरे महबूब मेरे सनम, शुक्रिया-मेहरबानी-वेलकम…”, “कुछ न कहो, क्या कहना हैं“, “मेरी सांसो में बसा हैं तेरा ही एक नाम, तेरी याद हमसफ़र सुबह-शाम“, “अज़नबी मुझको इतना बता दिल मेरा क्यों परेशान हैं“, “सपनो में मिलती हैं, कुड़ी मेरे सपनो में मिलती हैं” , “बस एक सनम चाहिए,आशिकी के लिए….”, “ये मौसम का जादू है मितवा…”, “ना कजरे की धार, न मोतियों का हार”…. ऐसे कितने ही गीत हैं जो पत्थर ह्रदय में भी प्रेम भरने की ताकत रखते हैं |


९०स के गीतों में कितना माधुर्य या मेलोडी थी, ये आपको उस समय के प्रेम गीतों से ज्यादा दुःख भरे गीतों से समझ आएगा | प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे से अलग हो रहे हैं और फिर भी प्रेमी बड़े ही प्रेम से गा रहा हैं – “चाहा हैं तुझको, चाहूँगा हरदम, मरकर भी तुझसे प्यार ना होगा कम…” | “ठुकरा के मेरा प्यार, मेरा इन्तेक़ाम देखेगी” वाली नई पीढ़ी के लिए इस गीत को समझना मुश्किल हैं | स्कूल-कॉलेज के ज़माने के अधूरे प्यार की खुशहाल शादीशुदा ज़िन्दगी की तस्वीर को सोशल मीडिया पर देखते हुए आज भी कितने लड़के सेंटी होकर गाते होंगे – “तू प्यार हैं, किसी और का, तुझे चाहता कोई और हैं…” | विज्ञापन, शोरशराबे और शोऑफ से भरे इस दौर में लोग कैसे समझेंगे कि कभी ऐसे भी प्रेमी हुआ करते थे जो गाते थे – “जताना भी नहीं आता, बताना भी नहीं आता, हमें तुमसे मोहब्बत हैं….. ” | आज हर दिन प्यार बदल जाता हैं और उस समय का प्रेमी कहता था – “मैंने उसकी गली में दिल को तोडा, फिर भी याद उसी को करता हैं ये दिल…” | ब्रेकअप के बाद कितनी मासूमियत और प्रेम से तब प्रेमी एक दूसरे से पूछते थे – “दिल मेरे चुराया क्यों, जब ये दिल तोडना ही था..”, “जिए तो जिए कैसे बिन आपके…” | ऐसा लगता हैं कोई दुखी होने पर रसगुल्ला खाकर ये गीत गा रहा हैं | एक दिलीप कुमार साहब वाला ज़माना था जब प्रेमी दिल टूटने पर ज़िन्दगी से निराश होकर मौत को गले लगाता हुआ गाता था – “तेरी दुनिया से होके मज़बूर चला, मैं बहुत दूर चला…” और एक नब्बे के दशक वाला ज़माना था जब जुदाई के बाद भी प्रेमी मन को समझाकर जीवन की नई शुरआत करते हुए गाता हैं – “नहीं साथ में ये अलग बात हैं, मेरे पास हैं वो…”, “तुझे याद ना मेरी आई, किसी से अब क्या कहना…”, “क्या हुआ जो एक दिल टूट गया, अब तेरे बिन जी लेंगे हम…” |


अक्सर 90स के बारे में बात करने में मधुर प्रेम गीतों की बात होती हैं, पर मस्ती और डांस से भरे गीत भी इस दौर में काफी बने, जो आज भी हर पार्टी की जान हैं | गोविंदा के मस्ती भरे नृत्य और संगीत में “ऊह” का स्पेशल इफ़ेक्ट लिए गीत “किसी डिस्को में जाये…” आज भी थिरकने पर मज़बूर करता हैं | सलमान खान जैसी बॉडी बनाकर, फटी जीन्स पहनकर “औ औ जाने जाना ढूंढे तुझे दीवाना…” गीत पर डांस करना आज भी हर लड़के की ख्वाहिश हैं | इंडियन माइकल जेक्सन प्रभुदेवा के गीत “मुकाबला-मुकाबला हो लैला…” और “उर्वसी-उर्वशी… ” उस समय डांस की मिसाल बन गए | आशा भोसले की शोख-चंचल आवाज़ में “याई रे, याई रे, जोर लगा के नाचे रे” और “ले गई-ले गई” गीत झूमने पर मजबूर करते हैं | “ढोली तारो ढोल बाजे” और “घूँघट में चाँद होगा, आँचल में चाँदनी” से अच्छे गरबा-डांडिया गीत आज तक नहीं बने हैं | सुनील शेट्टी का “शहर की लड़की…” और “हाई-हूकू…” थिरकाता भी हैं और हंसाता भी हैं | “यारा-औ-यारा मिलना हमारा जाने क्या रंग लाएगा…” में सन्नी देवल का डांस आपको पेट पकड़कर हँसने पर मज़बूर कर देगा | रेहमान सर के टेलेंट का ट्रेलर देता “हम्मा-हम्मा..” आज भी एकदम फ्रेश साउंड करता हैं | दलेर मेहंदी का “न-न-ना-रे, ना-रे, ना-रे…” गीत आज भी शादियों में बजता हैं| “टन-टना-टन, टन-टन-टारा, चलती हैं क्या नौ से बारह…” , “ये काली-काली आँखे तुरुरु“, “तू चीज़ बड़ी हैं मस्त-मस्त…”, “मेरी मर्ज़ी…”, “जब भी कोई लड़की देखूओले-ओले”, बन-ठन चली बोलो ओ जाती रे और “आती क्या खंडाला…” जैसे कई गीत हैं जो डांस और मस्ती का मज़ेदार संगम हैं |


सैनिको के लिए हमेशा देशभक्ति या उत्साह का संचार करते गीत लिखे गए, पर नब्बे के दशक ने सैनिको के दर्द को बहुत भावुक रूप में प्रस्तुत किया – “संदेसे आते हैं कि घर कब आओगे… ” | ये गीत सैनिक ही नहीं घर-परिवार से दूर हर व्यक्ति के दिल के करीब हैं | घर से दूर लोगो के लिए देश की मिटटी की खुशबू लिए एक और सुंदर गीत भी बहुत प्रचलित हुआ – “घर आजा परदेसी तेरा देस बुलाये रे…” | “ये तो सच है कि भगवान हैं…” गीत तो माता-पिता के लिए समर्पित और ग्रेटीटूड की भावना लिए बॉलीवुड का एकमात्र गीत होगा | प्रकृति की खूबसूरती को निहारता गीत “आवारा भवरे जो हौले हौले गाये…” आज भी नेचर से कनेक्ट कर देता हैं | “दिल हैं छोटा सा, छोटी से आशा…” गीत तो हर दौर के लिए मोटिवेशन एंथम बन गया | इस गीत के वीडियो में भी प्रकृति के सुखद रंग उकेरे गए हैं | बारिश को रोमांस से जोड़कर बहुत मीठे-मीठे गीत भी बने – “सुन-सुन-सुन बरसात की धुन…”, “टिप-टिप , टिप-टिप बारिश शुरू हो गई …”, “देखो जरा देखो बरखा की झड़ी…”, “सावन बरसे तरसे दिल, क्यों न निकले घर से दिल” | बारिश पर एक और गीत हैं जो सोशल मीडिया की भाषा में केवल लीजेंड लोगो को पसंद आता हैं – “बरसात के मौसम में, तन्हाई के आलम में, मैं घर से निकल आया, बोतल भी उठा लाया...” | चाँद पर काफी क्रिएटिव थॉट के साथ गीत बने – “चंदा रे चंदा रे कभी तो ज़मी पर आ…”, “चाँद छिपा बादल में…”, “मेरा चाँद मुझे आया हैं नज़र…”, “घुंघटे में चंदा हैं, फिर भी हैं फैला चारो और उजाला“, “चाँद-तारे तोड़ लाउ, बस इतना सा ख्वाब हैं..” | कभी चाँद तारो को प्यार का साक्षी रखकर गीत बने – “गवाह हैं चाँद-तारे गवाह हैं…”, “तारे हैं बाराती, चांदनी हैं ये बरात…”, “घूँघट में चाँद होगा, आँचल में चाँदनी…” | आयटम सांग की श्रेणी में एक महानतम गीत शामिल हुआ – “छैया-छैया” डिफरेंट म्यूजिक, कोरिओग्राफी और उर्दू की खूबसूरती से सजे इस गीत को सुखविंदर सिंह की आवाज़ अलग मुकाम देती हैं |


पर जैसा हर समय के साथ होता हैं वो नाइनटिस के साथ भी हुआ, इक्कीसवी सदी के शुभारंभ के साथ ही संगीत का वो सबसे मधुर और सुखद दौर बीत गया | “इलू-इलू” से शुरू हुआ वो सुरीला सफ़र “कहो ना प्यार हैं” पर अंतिम साँसे ले रहा था | प्यार और रोमांस का सिम्बॉल जो कभी शाहरुख़ खान और उनका हाथ फैलाकर बाहो में भरने का जेस्चर हुआ करता था, उसे इमरान हाश्मी अपने फूहड़ दृश्यों से पूरी तरह से बदलने वाले थे | राहुल और प्रेम जैसे किरदारों को दबंग और पठान रिप्लेस करने वाले थे | कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी के प्रयोग से संगीत सरल और समृद्ध होता गया पर लिरिक्स पर ध्यान देना कम कर दिया गया | टेक्नोलॉजी पर ज्यादा ध्यान देने की वजह से गीतों की मूल भावना या आत्मा पर काम करना बंद कर दिया गया | इस कारण से गीत तो अच्छे-बुरे दोनों तरह के बने पर संगीत सुनने का वो अहसास जो नाइनटिस में था, गुम हो गया | आज उम्र के तीस, चालीस या पचास बसंत पूरे कर चुके कितने ही लोग होंगे, जिनके दिल में मेरी तरह आज भी ढेर सारे गीत और अनगिनत यादो के साथ नाइनटिस का वो दौर जीवित होगा | और अपने सफ़ेद अधकचरे बालो के नीचे छिपे दिमाग में वो सोचते होंगे कि होने दो जिन्हे “बेशरम रंग” पसंद हैं, हमे तो आज भी “मेरे रंग में रंगने वाली” लड़की ही अच्छी लगती हैं |

— अंकित सोलंकी, उज्जैन (मप्र)

2 responses to “नेवर ओल्ड नाइनटीस – ट्रिब्यूट टू 90स बॉलीवुड सांग्स”

  1. होने दो जिन्हे “बेशरम रंग” पसंद हैं, हमे तो आज भी “मेरे रंग में रंगने वाली” लड़की ही अच्छी लगती हैं |

    Best line of article

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