
#friendship day
#friendship day
घटाओ के साज पर बादलो के गीत,
बूंदों में बरसता कुदरत का संगीत
पत्तो की कोमलता पर बूंदों की छुअन,
रूमानियत के रोमांच में भीगता हर मन
हवाओ के आगोश में मिटटी की खुशबु,
दिल को करती मदहोश, बना देती बेकाबू
बूंद-बूंद में धडकती बादलो की साँस,
हर बूंद से बंधी इन्सान की आस
आसमा से बरसता बरकत का नीर,
दिखते हे इसमें राम, मिलते हे पीर
बिजलियों में कड़कती बादलो की रंजिश,
सूरज को छिपाने की असफल कोशिश
आसमान पर लहराती काले बादलो की झालर,
बेरंग धरती को औडाती हरियाली चादर
सूखे वृक्षों को देती जीवन, पंछियों को दाना
नदी तालो में भर देती पानी का खजाना
–अंकित सोलंकी, उज्जैन (मप्र)
गम में गला गीला हो जरुरी तो नहीं
ख़ुशी में हाथ में प्याला हो जरुरी तो नहीं !
शराब आदत ख़राब हैं, ये जीवन ख़राब ही करेगी
पर ये आदत ही जीने की जरूरत हो जरुरी तो नहीं !
चार दोस्त मिल जाये तो चाय पर भी बात हो सकती हैं
यूँ नशे में बहककर लड़खड़ाना जरुरी तो नहीं !
अरे वो मर्द ही क्या जो होशोहवास में मन की बात न कह सके
दिल हल्का करने के लिए जहर की जरूरत हो जरुरी तो नहीं !
हँसी तो ओकेसनली बोलने वालो पर आती हैं
कोई ओकेज़न हर दूसरे दिन हो जरुरी तो नहीं !
सरकार का काम हैं कमाना, कमाती रहेगी
पर उनकी कमाई के लिए खुद को क़त्ल करना जरुरी तो नहीं !
जरा पूछो उस बेसहारा बच्चें से जिसका बाप कहता था
शराब पीने से लिवर ख़राब ही हो जरुरी तो नहीं !
जरा पूछो उस दुखियारी माँ से जिसके बेटा कहता था
दो पेग लगाकर गाड़ी ना चला सको जरूरी तो नही !
जरा पूछो उस गरीब मज़दूर के परिवार से जो कहता था
देसी दारू पीकर मौत ही हो जाये जरूरी तो नही !
अरे नशा करना ही हैं तो इश्क़-इबादत-मेहनत का करो
यू अनमोल जीवन को मौत को सौपना जरूरी तो नही !
–अंकित सोलंकी, उज्जैन (मप्र)
इस दुनियाँ का यही रोना हैं ,
कर ली तो धोना हैं ,
नहीं हुई तो होना हैं !
हर पल हर घडी कुछ ना कुछ होना हैं,
जो बीत गया वो खोना हैं,
जो आने वाला हैं वो भी खोना हैं !
अब देख लीजिये आपको क्या करना हैं
शिकवे शिकायतों में घुटना हैं
या हँसते मुस्कुराते जीना हैं !
क्योकि इस दुनिया का तो यही रोना हैं
कर ली तो धोना हैं ,
नहीं हुई तो होना हैं !
जो कुछ लिखा हैं ज़िन्दगी में
सब कुछ होना हैं !
बचपन को बोना हैं
बुढ़ापे को ढोना हैं !
जवानी की तो बात ही मत कीजिये
इसमें तो बहुत कुछ होना हैं
दिल को भी खोना हैं
इश्क़ को भी होना हैं !
अब देख लीजिये आपको क्या करना हैं
मोहब्बत में हर पल पिरोना हैं
या नफरतो में खुद को निचोना हैं !
क्योकि इस दुनिया का तो यही रोना हैं
कर ली तो धोना हैं ,
नहीं हुई तो होना हैं !
मंज़िल मुकाम सब कुछ मिलेगा
हर किसी का एक मुकम्मल वक़्त होना हैं !
सपनो का बिछोना हैं
उम्मीद के साथ सोना हैं
आने वाला नया सवेरा हैं
जिसे जी भर के जीना हैं !
अब देख लीजिये आपको क्या करना हैं
सुस्त निकम्मे बनकर रहना हैं
या मेहनत का मोती बोना हैं !
क्योकि इस दुनिया का तो यही रोना हैं
कर ली तो धोना हैं ,
नहीं हुई तो होना हैं !
सौंप दो खुद को इश्क़ को
कि प्यार का महीना आ गया हैं
निभा लो प्रीत की रस्म को
कि प्यार का महीना आ गया हैं
होने दो इस जादू भरे जश्न को
कि प्यार का महीना आ गया हैं
झूमने दो मचलते जिस्म को
कि प्यार का महीना आ गया हैं
कह दो नफरतो वाली नस्ल को
कि प्यार का महीना आ गया हैं
क्या पाया है सीमाओ में बांधकर विश्व को
कि प्यार का महीना आ गया हैं
कुरेदो ना पुराने जख्म को
कि प्यार का महीना आ गया हैं
याद करो राधा और कृष्ण को
कि प्यार का महीना आ गया हैं
खुदा खैर रखना सबकी
कि रुत चल रही हैं ग़म की
शिकवे-शिकायत हम बाद में देख लेंगे
अभी तो जरूरत हैं बस तेरे रहम की
खतावार मैं हूँ तो सजा भी हो सिर्फ मेरी
ना काटे कोई क़ैद मेरे करम की
आरजू हैं अमन कायम रहे मुल्क में
मुस्कुराती रहे हर कली मेरे चमन की
एक तू ही तो हैं हर दीन-दुखी का सहारा
तू हैं तो क्या जरूरत किसी दूजे सनम की
खुदा खैर रखना सबकी
कि रुत चल रही हैं ग़म की
— अंकित सोलंकी , उज्जैन (मप्र) (मौलिक एवं स्वलिखित)
जल जाता हैं रावण रह जाती हैं राख
सबको समझाती एक ही बात
कि रावण को मारता नही हैं राम
रावण को मारता हैं उसका अभिमान
पुरुष की भी होती हैं लक्ष्मण रेखा
पुरुष के लिए भी होती हैं मान मर्यादा
जिसने भी इस रेखा को लांघा
उसका विनाश सारे संसार ने देखा
गृहस्थ सी गरिमा और साधु सा सदाचार
यही होते हैं पुरुष के श्रृंगार
और सत्य की रक्षा, अन्याय का दमन
यही हैं वास्तविक पुरुषार्थ की पहचान
राम रावण हैं दो विचार
एक दूषित तो दूसरा निर्विकार
जीवन में उतारो राम सा व्यवहार
इसीलिए तो हैं विजयादशमी का त्यौहार
—- अंकित सोलंकी, उज्जैन (मप्र)
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Prose & Article Blog By Suman Sadekar
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संजोया हैं समय से चुराकर, कुछ पलों को पन्नो पर!
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