वो कोई प्रेम गीत नहीं था । असल में तो वो गीत ही नहीं था, वो तो दिल टूटने का किस्सा था, विषाद का अहसास था, गहरे अवसाद को उत्सव की तरह परिभाषित करने की कोशिश थी । कोई नौजवान प्रेम में असफल होने पर आत्महत्या की कोशिश करता हैं, और इस असफल कोशिश के बाद अस्पताल में भर्ती हैं । अब इस नौजवान को कोई क्या समझाए, वैसे भी बीस बाईस बरस की उम्र में कोई कहा किसी की सुनता हैं, माँ-बाप अचानक से पिछली सदी के लगने लगते हैं, दुनिया दिल के सारे अरमान पूरे करने की जगह लगने लगती हैं, मन सपनो के पीछे भागने लगता हैं । और जब ये अरमान, ये सपने टूटते हैं, तो कुछ नहीं बचता । अपरिपक्य मन आत्महत्या जैसे विकल्प तलाशने लगता हैं ।
पर मुन्नाभाई को इस नौजवान को जीवन का महत्त्व समझाना था। आती-जाती सांसो का वजन किसी के भी प्यार से कही ज्यादा होता हैं, और प्यार के लिए इन साँसों को रोक दिया जाये, इससे बड़ा कोई अपराध नहीं । जब तक सांसे चल रही हैं, तब तक जीवन को पूरे दिल से जीना हर जीव का अधिकार ही नहीं वरन दायित्व भी हैं । तो गीत आरम्भ होता हैं जब नौजवान मुन्नाभाई को कहता हैं, आपको क्या पता प्यार क्या होता हैं ? ये मानवीय हृदय की दुर्बलता हैं कि उसे हमेशा अपना दुःख, अपना दर्द ही सबसे ज्यादा प्रतीत होता हैं, दूसरे का दुःख हमेशा अपने से कम ।
अब प्यार का पता बताने के लिए एक कहानी गढ़ी जाती हैं, हेमा के साथ प्यार की कहानी । ये कहानी नकली हैं, पर नगर-महानगर, गली-मोहल्लो में रहने वाले लाखो नौजवानो पर फिट बैठती हैं । कहानी में पहले दीदार का जिक्र हैं और सर का चक्कर खाना, ट्रक के साथ टक्कर खाना जैसे अतिशयोक्ति दी गई हैं । मुन्नाभाई हेमा के साथ प्यार में अपना धंधापानी भूल जाते हैं और कल्लन जैसे दोस्तों को पीट भी देते हैं । पैसा-दोस्ती समय सब प्यार पर कुर्बान कर देते हैं, और तभी एक मार्मिक आवाज़ सुनाई देती हैं – ‘फिर हेमा का क्या हुआ’ । यही से नकली कहानी का असली एन्ड शुरू होता हैं । हेमा की शादी कही और हो जाती हैं और भाई का दिल टूट जाता हैं । कहानी अपनी नियति को प्राप्त होती हैं और फिर से एक मार्मिक पंक्ति आती हैं, गीत का संपूर्ण सार – “सपना टुटा तो दिल कभी जलता हैं, हा थोड़ा दर्द हुआ पर चलता हैं”। चलता हैं, चलाना पड़ेगा और चलाना ही हैं, यही जीवन हैं । किसी भी दर्द के बोझ में आकर आप साँसों को नहीं रोक सकते। उस रात दौ बजे तक पीने और गम हल्का करने के बाद मुन्नाभाई के जीवन में भी अगला दिन आता हैं, और अगले दिन………अगले दिन वही जीवन शुरू आता हैं, वही दोस्तों के बीच उठाना-बैठना शुरू हो जाता हैं, वही गंदे गिलास की चाय-पान-बीड़ी और वही धंधा पानी । यही जीवन हैं, इसमें हमेशा अगला ही होता हैं, पिछला कुछ नहीं |
ये गीत २००३ में आई फिल्म मुन्नाभाई ऍम बी बी अस में था, और गीत अपनी फिल्म के कथानक से गुथा लगता हैं, अकेले जैसे इस गीत का कोई अस्तित्व ही नहीं । गीत को अपनी कड़क और रौबदार आवाज़ में गया था विनोद राठोड ने और इसके मजेदार लिरिक्स लिखे थे अब्बास टायरवाला ने, संगीतकार थे अन्नू मलिक । गीत के बीच में औ-औ-औ की तुकबंदी बहुत ही मधुर हैं और पूरे गीत में बदलते संजय दत्त के भाव इसे संपूर्ण बनाते हैं । टपोरी स्टाइल के इस गीत को सुंनने से ज्यादा सुखद अनुभव देखने में हैं । अशरद वारसी और उनकी टपोरी गैंग के कमैंट्स और बेतरतीब हरकतों को देखे बिना इस गीत का अनुभव अधूरा हैं ।
और अंत में – वैसे खुदखुशी करने का विचार लेन वालो पर इस गीत से कही ज्यादा असर इस गीत के शुरुआत में होने वाले संवादों में हैं – “साला छह महीने के प्यार में मरने चला था, तेरी माँ तेरेको बचपन से प्यार करती हैं, उसके लिए जी नहीं सकता तू । और आंटी तुम भी ना, एक आंसू टपका नहीं कि पल्लू से पौछने चली, थोड़ा टफ होने देना का ना ।” सच हैं, माँ-बाप के प्यार से बढ़कर कुछ नहीं और थोड़ा टफ होना एक तरह से जीवन की मूलभूत आवश्यकता ही हैं ।
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