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रूह का आँचल
भला-पूरा पागल हूँ मैं गिरा-संभला आँचल हूँ मैं जो ढलका कभी तो जमीं से जुड़ गया मैं जो उड़ा कभी तो हवाओं में घुल गया मैं क्या हुआ जो सर से थोडा सरक गया मैं पागल हवाओ को पहले परख गया मैं कोई जख्म तो तेरे जिस्म पर नहीं दे गया मैं मुहब्बत की बादलो…