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जंग

इंसानियत दो हिस्सों में बंट गई
जमीन पर जब सरहद बन गई
करतूत देखो कमीने इंसान की
मुल्क बनाये, मिट्टी बंट गईं
फिर बैठी बिसात सियासत की
फौज बनी, बंदूके तन गई
हुक्मरानों को तो हुकूमतें चलाना था
फरमान निकाला जंग छिड़ गई
कौन सही कौन गलत
सारी दुनिया इसी में लग गई
कौन देखे उन मासूमों को
जिनकी ज़िन्दगी जहन्नुम बन गई
कितनी माँ बेऔलाद हो गई
कितनी बेगमे बेवा बन गई
सारा झगड़ा सिर्फ सरहद का था
एक लकीर से इंसानियत मिट गई
ठाकुर ने इतिहास रो-रोकर ही पढ़ा
हर पन्ने पर जो एक जंग दिख गई
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दिसंबर
उज्जैयनी
खुशी

खुश हो तो खुशी दिखना चाहिए
दिल से निकलकर चेहरे से टपकना चाहिए
हँसने के हर मौके को लपकना चाहिए
ठहाके की आवाज़ मंज़र में ठहरना चाहिए
कोई जादूगर नहीं जो मन की बात समझ ले
अहसास को अल्फ़ाज़ में बयां करना चाहिए
आये कोई मिलने तो उसे ये लगना चाहिये
ये आदमी हैं दिलचस्प इससे मिलते रहना चाहिए
वक़्त तो बदलेगा उसे बदलना चाहिए
ये मुस्कान आपके हौठो पर हमेशा ठहरना चाहिए
और कोई मक़सद नही मेरा कुछ लिखने का
बस आपका और हमारा याराना यूँही चलना चाहिए
शराब इतनी जरूरी तो नही !
गम में गला गीला हो जरुरी तो नहीं
ख़ुशी में हाथ में प्याला हो जरुरी तो नहीं !
शराब आदत ख़राब हैं, ये जीवन ख़राब ही करेगी
पर ये आदत ही जीने की जरूरत हो जरुरी तो नहीं !
चार दोस्त मिल जाये तो चाय पर भी बात हो सकती हैं
यूँ नशे में बहककर लड़खड़ाना जरुरी तो नहीं !
अरे वो मर्द ही क्या जो होशोहवास में मन की बात न कह सके
दिल हल्का करने के लिए जहर की जरूरत हो जरुरी तो नहीं !
हँसी तो ओकेसनली बोलने वालो पर आती हैं
कोई ओकेज़न हर दूसरे दिन हो जरुरी तो नहीं !
सरकार का काम हैं कमाना, कमाती रहेगी
पर उनकी कमाई के लिए खुद को क़त्ल करना जरुरी तो नहीं !
जरा पूछो उस बेसहारा बच्चें से जिसका बाप कहता था
शराब पीने से लिवर ख़राब ही हो जरुरी तो नहीं !
जरा पूछो उस दुखियारी माँ से जिसके बेटा कहता था
दो पेग लगाकर गाड़ी ना चला सको जरूरी तो नही !
जरा पूछो उस गरीब मज़दूर के परिवार से जो कहता था
देसी दारू पीकर मौत ही हो जाये जरूरी तो नही !
अरे नशा करना ही हैं तो इश्क़-इबादत-मेहनत का करो
यू अनमोल जीवन को मौत को सौपना जरूरी तो नही !
–अंकित सोलंकी, उज्जैन (मप्र)
इस दुनियाँ का यही रोना हैं !
इस दुनियाँ का यही रोना हैं ,
कर ली तो धोना हैं ,
नहीं हुई तो होना हैं !
हर पल हर घडी कुछ ना कुछ होना हैं,
जो बीत गया वो खोना हैं,
जो आने वाला हैं वो भी खोना हैं !
अब देख लीजिये आपको क्या करना हैं
शिकवे शिकायतों में घुटना हैं
या हँसते मुस्कुराते जीना हैं !
क्योकि इस दुनिया का तो यही रोना हैं
कर ली तो धोना हैं ,
नहीं हुई तो होना हैं !
जो कुछ लिखा हैं ज़िन्दगी में
सब कुछ होना हैं !
बचपन को बोना हैं
बुढ़ापे को ढोना हैं !
जवानी की तो बात ही मत कीजिये
इसमें तो बहुत कुछ होना हैं
दिल को भी खोना हैं
इश्क़ को भी होना हैं !
अब देख लीजिये आपको क्या करना हैं
मोहब्बत में हर पल पिरोना हैं
या नफरतो में खुद को निचोना हैं !
क्योकि इस दुनिया का तो यही रोना हैं
कर ली तो धोना हैं ,
नहीं हुई तो होना हैं !
मंज़िल मुकाम सब कुछ मिलेगा
हर किसी का एक मुकम्मल वक़्त होना हैं !
सपनो का बिछोना हैं
उम्मीद के साथ सोना हैं
आने वाला नया सवेरा हैं
जिसे जी भर के जीना हैं !
अब देख लीजिये आपको क्या करना हैं
सुस्त निकम्मे बनकर रहना हैं
या मेहनत का मोती बोना हैं !
क्योकि इस दुनिया का तो यही रोना हैं
कर ली तो धोना हैं ,
नहीं हुई तो होना हैं !
पति-पत्नी
दिसंबर
खुदा खैर रखना सबकी
खुदा खैर रखना सबकी
कि रुत चल रही हैं ग़म की
शिकवे-शिकायत हम बाद में देख लेंगे
अभी तो जरूरत हैं बस तेरे रहम की
खतावार मैं हूँ तो सजा भी हो सिर्फ मेरी
ना काटे कोई क़ैद मेरे करम की
आरजू हैं अमन कायम रहे मुल्क में
मुस्कुराती रहे हर कली मेरे चमन की
एक तू ही तो हैं हर दीन-दुखी का सहारा
तू हैं तो क्या जरूरत किसी दूजे सनम की
खुदा खैर रखना सबकी
कि रुत चल रही हैं ग़म की
— अंकित सोलंकी , उज्जैन (मप्र) (मौलिक एवं स्वलिखित)
