रंग लहू के कितने रंगों में बदल जाते हैं
बने तो भारत, ना बने तो पाकिस्तान में बँट जाते हैं !!
मोहब्बत वो बचपन की दिल कुछ यु भूल जाते हैं
रात के सपने सारे सुबह आँखों से धुल जाते हैं !!
संग-संग सगे-सगे ना संग रह पाते हैं
रंग-रंग वो प्यार के जंग में जुट जाते हैं !!
कैसा होता हैं जब दौ भाई भिड़ जाते हैं
हाथो में तलवार लिए माँ का दामन चीर जाते हैं !!
कर्ज दूध का दरिन्दे कुछ यु चुकाते हैं
लहू बहाकर सीने से खूनी खीर पकाते हैं !!
काया को माँ की कुटिल काँटों से कुरेदते हैं
कटा कुछ तो बंगलादेश, ना कटा तो कश्मीर लटक जाते हैं !!
नफरत की इस नहर में नौजवान नंगे नहाते हैं
बैर ये बुजुर्गो का अब भी पाठशाला में पढ़ाते हैं !!
किताबे इतिहास की इंसानियत को इलज़ाम देती हैं
तेरे रक्त के रंगों से मेरी स्याही बदनाम होती हैं !!
कब तक कोई किस्सा कारगिल और कसाब पर लिखे हम
अच्छा हैं कोई कविता पेशाब पर लिखे हम !!