Tag: Shayari
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खुदा खैर रखना सबकी
खुदा खैर रखना सबकीकि रुत चल रही हैं ग़म की शिकवे-शिकायत हम बाद में देख लेंगेअभी तो जरूरत हैं बस तेरे रहम की खतावार मैं हूँ तो सजा भी हो सिर्फ मेरीना काटे कोई क़ैद मेरे करम की आरजू हैं अमन कायम रहे मुल्क मेंमुस्कुराती रहे हर कली मेरे चमन की एक तू ही तो…
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“बरामदे की धूप” available in book format
Its an year and so, I haven’t update anything in blog. But good news is that I was trying to publish the content of blog in the form of book…and result is fruitful. All the poems of this blog are available in the form of book and e-book.You can buy it from online websites. Hope…
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बरसो हुए
कल वाले दिन अब परसों हुए उस जुनू को जिये बरसो हुए दिन कटता था जिसके दीदार में उस इश्क़ को किये बरसो हुए वो भी क्या दिन थे लगता हैं सब कल परसों हुए हाथो में हाथ हसीना का साथ उसे बाँहों में भरे बरसो हुए जिस मंज़र से की थी इस क़दर चाहत…
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रात
हर रात रूआसा कर जाती हैं आसुओं का काम आसां कर जाती हैं अखरती हैं अंगड़ाई कुछ इस कदर कि नरम शैया भी डोलती नैय्या बन जाती हैं ज़िन्दगी के बिस्तर पर किसी की कमी खल जाती हैं जब अपनी आह किसी की आहट को तरस जाती हैं और इस बात पर तबियत और बिगड़…
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वो गीतों में मेरे रंग भर देता हैं !!
वो गीतों में मेरे रंग भर देता हैं , छेड़कर तारों को तरंग भर देता हैं मेरे ही ख्वाबो ख्यालो को बुनकर इन गज़लों को मेरे संग कर देता हैं ! मैं सो भी जाऊ तो वो मेरे संग रहता हैं बेरंग सपनो को सतरंग कर देता हैं ये उसका ही हाथ रखा हैं मेरे…
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सियासत
बात मुझसे जुडी हो तो जानना जरूरी हैं समस्या कैसी भी हो समझना जरूरी हैं कितनी भी बात करे हम लोग भलाई की भला करने के लिए बुराई लेना भी जरूरी हैं ये लोग जिन्होंने सियासत को खेल बना रखा हैं जानते नहीं की खेलने के लिए मैदान साफ रखना भी जरूरी हैं एक अरसा…
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हाल-ए-दिल
तारीफ करू या तकलीफ बताऊ, हाल-ए-दिल पर कैसे सुनाऊ ! ख्वाब नहीं जो मैं भूल जाऊ, इस खुशबू को मैं कहाँ छिपाऊ ! तेरे पास आऊ या तुझसे दूर जाऊ, इस चाहत को मैं कैसे जताऊ ! लड़की नहीं जो मैं शरमाऊ, शेर दिल हूँ फिर क्यू घबराऊ ! जंग हो तो मैं जीत भी…
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नशा
Dedicated to all my drinker friends थोडा खुद को सजा दीजिये कोई ना कोई नशा कीजिये कब तक यु सेहत का मज़ा लीजिये जख्मो को भी तो जगह दीजिये चाहे जितनी मर्जी चंदा कीजिये थोडा चखना और एक बोतल पर मंगा लीजिये बेरहम ज़माने से बेखबर बनिए बोतलों में बहकर बेशरम बनिए फालतू की अब फिक्र…
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गुस्ताखी
किसका भला हुआ हुआ हैं किनारों पर बैठकर, बेमौसम बारिश की बहारो को देखकर ! कभी देखना किसी माझी से पूछकर, कितना मजा आया उसे तुफानो से खेलकर ! करते रहिये थोड़ी गुस्ताखी जानबूझकर, खुदा भी खौफ खाता हैं खामोश चेहरों को देखकर ! वैसे खुश कोई नहीं यहाँ अपना आज देखकर, रोता हैं हर…