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मेरा गाँव, मेरा देश
गाँव वीरान हैं, कसबे बेजुबान हैं शहरों में रहने चला गया वो जो घर का जवान हैं आता हैं घर ऐसे जैसे मेहमान हैं बूढी आँखों को फिर भी इतने में इत्मिनान हैं ! कहने को नगर हैं, कहने को महानगर हैं ऊँची इमारतों के नीचे पर एक लम्बी गटर हैं ! आदमी हैं…