Dialogs with self
आराम अखरता हैं,
सुकून सताता हैं !
मंजिल की चाहत में अब मुसाफिर,
दिन रात चलता हैं !
क्या कहूँ इस जाते हुए साल के बारे में,
एक झोका था हवा का जो बहकर निकल गया !
..थोडा सा सासों में बस गया,
…बाकी छूकर चला गया !!
रात भर चलता रहा वो ख्वाबो का मुसाफिर
सोचता था सुबह मिलेगी सुनहरी मंजिल
…पर आँख खुली तो थम गया वो ख्वाबो का सफ़र
….फिर शुरू होने लगा था वही दिन, वही जीवन
Dialogs with friends
बोले दो बोल तो बाते बन गयी ,
बिताये साथ पल तो यादें बन गयी !
मैं ज़िन्दगी को बस जीता चला गया,
और ये दौलत मेरी बड़ती चली गयी
किये जो वादे वो इरादे बन गए,
निभाए जो नाते वो मिसाल बन गए !
मिले हे कुछ ऐसे दोस्त हमें ज़िन्दगी में,
कि हम खुद-ब-खुद आम से बेमिसाल बन गए !!
ख्वाहिशो की डोर को खुलने दो जरा
दिल की पतंग को उड़ने दो जरा
आया हे ये मौसम कितना सुनहरा
वक़्त की रेत को रोक लो ज़रा
शुरू किया जब हमने अपना तराना सुनाना
सारा जहाँ सुन रहा था, गुनगुना रहा था !
बस सो रही थी वो दो आँखे
जिसके लिए हमने ये फ़साना शुरू किया था ! 😦
Dialogs with God
तेरे इस जहाँ में ए खुदा,
बस दो ही लोग रोते हैं !
एक तू जिन्हें दर्द देता हैं,
दूसरे तू जिन्हें दिल देता हैं !
इबादत मेने की, रहमत उसने की !
दुआए मेरे दोस्तों की जो रोशन ये ज़िन्दगी की !!
निकली जो बात मेरी ख्वाहिशो की,
पूरी रात गुजर गयी !
कुछ बातो में बंद होकर रह गयी,
कुछ जीने को एक और वजह दे गयी !!
तकलीफ को खुदा का भेजा मेहमान मानो,
खातिरदारी को इसकी अपना ईमान समझो !
जायेगा ये भी एक दिन हर मेहमान की तरह,
अपने खुदा को इतना भी मत बईमान समझो !
यु तो हँसी पर हें हक हमारा मालिकाना
पर होठ नहीं चाहते हरदम मुस्कुराना !
हो दर्द अपना ही तो हँस भी लो
गैरो के गम पर भी क्या मुस्कुराना !
ना अपनों से तकल्लुफ़ करता हूँ
ना गैरो का तकाज़ा रखता हूँ !
जो भी मिल जाता हैं राहों में मुस्कुराता हुआ
बस उसी को ख्वाजा के नाम से नवाजा करता हूँ !
ज़िन्दगी में गर तू शामिल हैं
तो ही ज़िन्दगी जीने के काबिल हैं !
लिखता हु मैं अब उसी के वास्ते
ये हुनर जिससे मुझे हासिल हैं !!
नजरे तरसती हैं उन नज़रो को देखने के लिए,
वो नज़रे जो अब इस दुनिया में नहीं हैं |
नज़रे थी वो दुआओ वाली……..
आशीर्वाद भरे अरमानो वाली………
निश्छल प्यार लुटाने वाली…..
सूरत से मेरी खुश होने वाली…….
One response to “महफ़िल-ए-ठाकुर”
bhigi fiza se tu ne ye bata diya ke barish me kitni bunde thi ,
humne tanhaiyan ke allam se alam pata kar liya ke dil me kitne daraar thi.
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