Category: Articles
-
Work from home, life in IT industry and me
Hello Friends, Happy Sunday and welcome in my garden of words ! Work from home kills the craze of Friday otherwise Friday was happiest day of the week. There was a time when offices get empty early in Friday evening, but everyone used to reach home late in night. And I don’t want to tell […]
-
केके
कृष्णकुमार कुन्नथ उर्फ़ केके को सबसे पहले हमने सुना एल्बम “पल” में | पल-चल जैसे नर्सरी राइम वाले शब्दों पर बना गीत “ये हैं प्यार के पल” आज भी स्कूल कॉलेज की यादो का एंथम बना हुआ हैं | ठहराव केके की गायकी का मूल तत्व हैं, इस गीत में भी वो पल या चल […]
-
कटी पतंग का क्या करे ?
कटी पतंग का क्या करे ? हम सभी लोगो को अगर कोई कटी पतंग मिलती हैं तो हम लोग उसे धागा बांधकर उड़ाना शुरू कर देते हैं । पर ऐसी कोई कटी पतंग इन प्रसिद्ध व्यक्तियों को मिलती हैं तो वो क्या करते हैं । आइये जानते हैं :- महात्मा गाँधी – कटी पतंग पर […]
-
इंतेज़ार, ऐतबार, तुमसे प्यार कितना करू…
साल 2006 में एक फ़िल्म आई थीं – खोसला का घोंसला । भू-माफिया के चंगुल में फसे दिल्ली के एक मध्यम वर्गीय परिवार पर आधारित ये फ़िल्म बहुत दिलचस्प थी । इस फ़िल्म में कैलाश खैर की आवाज़ में चक दे फट्टे जैसा रोचक गीत भी था । इस फ़िल्म को देखने के बाद लगा […]
-
शेर, शाकाहार और प्रकृति
चमगादड़ खाने की कीमत आज हम चूका रहे हैं पर शेर को पिंजरे में बंद करने की कीमत चुकाना अभी बाकी हैं ! ————————– शेर और शाकाहार, ये कभी संभव नहीं हैं । प्रकृति ने शेर को मांसाहारी ही बनाया हैं । शेर को वैसे शारीरिक रूप से भी प्रकृति ने बहुत सक्षम बनाया हैं […]
-
हाँ थोड़ा दर्द हुआ पर चलता हैं !
वो कोई प्रेम गीत नहीं था । असल में तो वो गीत ही नहीं था, वो तो दिल टूटने का किस्सा था, विषाद का अहसास था, गहरे अवसाद को उत्सव की तरह परिभाषित करने की कोशिश थी । कोई नौजवान प्रेम में असफल होने पर आत्महत्या की कोशिश करता हैं, और इस असफल कोशिश के […]
-
शुक्रवार
सोमवार तो नीरस हैं, निर्जीव जैसे पतझड़ में आबरू खोया पलाश का पेड़ । मंगलवार भी बंजर जमीन जैसा उबड़-खाबड़ और पथरीला । बुधवार जैसे बाजरे की रोटी और प्याज, स्वास्थ्य के लिए गुणवान पर बेस्वाद और बैरंग । गुरुवार जैसे दोपहर का ढलना और शाम की दस्तक, चार बजे की चाय । और शुक्रवार […]
-
मकोडिया आम
आगर रोड जब उज्जैन के चामुंडा माता चौराहे से होते हुए आगे बढ़ती हैं तो उज्जैन शहर की सीमा से बाहर होने के पहले एक क्षेत्र से होकर गुजरती हैं, जिसे मकोडिया-आम कहते हैं । मुझे बचपन मे लगता था ये नाम किसी मुगल शासक ने रखा हैं, जैसे दीवाने-खास, दीवाने-आम होते हैं वैसे ही […]