ज़िन्दगी एक सितम मेरे नाम कर
मुझे नाम दे या बदनाम कर
यु ना मेरी सूरत को गुमनाम कर
इसे पहचान दे या कुरबान कर
आसमाँ को ताकू इस आरज़ू से मैं
कि कोई तो नज़राना मेरे भी नाम कर
लायकी नहीं तो आशिक़ी में बखान कर
नायको में नहीं तो खलनायकों में शुमार कर
बस एक किस्सा मेरे भी नाम कर
कि देखे मुझे लोग सांसो को थामकर
“ठाकुर” मेरी छलांग में इतना फौलाद भर
की एक पैर हो जमी पे और दूजा हो चाँद पर
2 responses to “सितम”
very nice poem
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thanks Sandeep ji 🙂
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