उस घर पर बम ना गिराना कि वहाँ भी एक बेटा रहता हैं
खटिया पर खांसता हुआ एक बुढा भी लेटा रहता हैं !
एक धमाका खामोश कर देता हैं मुस्कान कई माँऔ की
क्या बम बनाने वाले नहीं जानते कि माँ का भी कलेजा रहता हैं !
जहाँ बम नहीं गिर रहे वहाँ बन्दूके निकल आई हैं
मजहब के नाम पर मौत की संदूके निकल आई हैं !
मैं जानता हूँ मेरे दरवाजे पर किसी धमाके की आवाज़ नहीं आती हैं
देखते हैं कब तक मेरा शहर इस गूंज से महफूज़ रहता हैं !
शान से कह देते हैं हम लोग कि हमें क्या करना हैं
हर कायर इस मुल्क में मासूम बनकर रहता हैं !
हर सुबह “ठाकुर” खुद से ये सवाल पूछता रहता हैं
अख़बार की इन सुर्खियों पर तू कैसे चाय की चुस्किया लेता रहता हैं !
5 responses to “बम”
कल 26/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
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धन्यवाद !!
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Very true and touching
वे दहशतगर्द तो क्रूर है ही, हम भी दिन पर दिन असंवेदनशील होते जा रहे है
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Mujhe Nahi samjh aata ki log aisa kyu karte hai…..kyu dushmani ke rishte nibhate aur bnate hai….
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Aaj Mei Kuch Aur dhundhte dhundhte Aapke blog pe aa pahuchi Aur Ek Kavita padhte hi khudko rok nhi Pai. Ek Ke baad Ek sabhi Kuch padh Dala par Mann Abhi Tak nhi bhara.
Humesha aise hi likhte rehna kyunki aapka kaam bohot hi behtareen Hai.
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